जयध्वज पूज्य जयमलजी महाराज का जीवनचरित्र | Jaydhwaj Pujya Jaymalji Maharaj Ka Jeewancharitra

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Jaydhwaj Pujya Jaymalji Maharaj Ka Jeewancharitra by गुलाबचंद नानचंद सेठ - Gulabchand Naanchand Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनी बात बचपन में “बडी साधु वंदना ” के पद याद किये थे। इसका प्रचार भारत की समस्त साधु-मार्गीय संप्रदायों में है। तब, यह विचार आया नहीं था कि कभी इसके रचयिता के भव्य जीवन चरित्र को मैं लिखूंगा । ' आचाये पृज्य जयमलजी महाराज का जीवन अपनी ऐसा विशेषता को लिये हुए है कि वह मानव मात्र के हृदय को छ लेता है। भाज से पांच वर्ष पूर्व मद्रास (मलापुर) के चांतुर्मास के समय शांतमूर्ति स्वामी श्री चांदमंलजी महाराज (स्व.), कवि हृदयं श्री जीतमलजी महाराज, पं, रत्न श्री लालचन्दजी महाराज आदि संतों के संसर्ग में आने से वह जीवन चंरित्व विस्तार से जानने को मिला, और उसे लिखने की उत्कंठा हुई। थोड़े प्रकरण लिखे गये, और उसके प्रकाशन की तुरंत व्यवस्था की गयी । यह काये शीर्ष संपर्ण होगा ऐसा सोचा था। लेकिन जीवन चरित्न की विशालता ओर ,विराठ स्वरूप का ख्याल लिखते-लिखते ही आया। अधिकारपूर्ण लेखन कार्य के लिए संशोधन काफी करना पड़ा और लेखनः कायै में धारणा से अधिक समय लगा । इतने बड़े ग्रंथ को लिखने की शक्ति केवल पूज्य संतों की सतत प्रेरणा, मार्गदर्शन ओर दृढ़ संकल्प के बिना मुझमें नहीं आती । प्रारंभ में लिखित सामग्री को सुनना और बाद में उसका अभ्यासपूर्वंक अवलोकन करके मेरा मार्गदर्शन वे करते रहे। उनके संपूर्ण उत्साहपूर्ण योग के बिना इसका लेखन पूर्ण नहीं होता यह निस्संदेह है । भ उनका सदैव ऋणी रहुंगा । इस ग्रंथ में जो विशेषतायें हैं वे ग्रंथ नायक आचार्य पूज्य श्री जयमलजी महाराज की स्थयं की हैं। उपसर्ग ओर परिषह से भरपुर जनपदोंको साधु मार्गीय संतों के विहार के योग्य बनाना, राजा महाराजाओं पर प्रभाव डालना, जहां उनके संत जीवन के अद्भूत साहस को प्रकट करते है, वहां संध एकता के लिए उनका अपूर्वे त्याग उनकी पदनिलेंप उज्जवलता का परिचय देते हुए एक अनुकरणीय आदशे उपस्थित करता है । मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत 50 हजार से ऊपर पदों की रचना करनेवाला उनका कोमल कवि हृदय मानवीय भावनाओं का प्रवय प्रतिनिधित्व करता है तो उनकी 80 वर्ष से ऊपर जीवन भय आडे आसन नहीं लेटने की भीष्म प्रतिज्ञा उनके दृढ़ संयमी मनोबल को प्रकट करती है। भन्यो को जीत लेनेवाला मधुर स्वभाव, ओजस्वी प्रवचन, मधुर कंठ और सहृदयता बरबस ही उनके प्रति लेखक को नतमस्तक करदेतीहै।




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