अत्तररामचरितम् | Uttarramcharitam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० लाते हैं--( १ ) जो बात सब के सामने कद्दी जाय, उसे सर्वश्राव्य या भ्रकाश चहते हैं | प्राय. श्रनेक रूपकों के स्वाश में ऐसी ही क्यायरत होती है । (२) जो दूसरे पात्रों के सुनने योग्य न द्ोवर केवल अपने द्वी सुनने योग्य हो शीर उस यह पात्र अपने मन के लिए दही कदे, वह स्वगत--या छश्राव्य- ट । मार श्रौर प्रहसन में भ्ाय ऐसी क्थावस्तु होती है । ( ३ ) जौ वल कुं पातो ठ षामन कटी जा सरे, वह नियनश्राञ्य २। লিনা में ही जब दो पान हाय की श्रोट करक बात करते नो उपे जनान्तिक, অন काई पात्र मुँह फेर कर दूसरे पान वी गुप्त बात कहता है तो उसे अपवारित ओर जय श्रातरश की श्रोर देस पर जिसी से बरातदीत धरने का अमिगय यरत हुए कोइ भ्रपन श्राप प्रश्न श्रीर उत्तर दोनों फ्हता चला जाता है तो उसे आकाशभाषित ऋहते हैं| मूल्य घटनाय या कथये प्राय श्कों के श्रन्तराल म श्राती हैँ । फयावस्तु के विभाग क श्रनुसार रुपक अ्रकों म॒विभक्त होता है ( 'अ्रक का श्र्थ होता है एक काल की मिस्न्तर चलने वाली कथा का विभाग | प्राय पात्रों के प्रवश और प्रस्थान द्वारा इस क्या विमाग के प्रसग म नवीनता होती रहती £। अर्थ प्रकृति, अनश्था और सधियाँ रूपक কা क्यावस्तु प्राय मानय जीवन के किसी तथ्य वी अ्रमिन्यक्ति लेबर पक्चत्रि] टोनी ८ | रसुपक म इस तथ्य या वियारा क्‍्थातस्तु वी 'अथ प्रकृति बन चाता ह 'अर्थात्‌ इस तथ्य को शर्य ( मुस्थ प्रयोजन ) पहते हैं । हस श्रथ 7 विरस मे হান ফা न्यापार की जो सला होती है, उत अश्रस्था शरीर इस प्रथा जे स्योग से अर्थ प्रकृति के रूप में विम्तृत ये थानक यो जो पाँच पशों में विभक्त रहता है, आपस में परस्पर सम्पद्ध परने को मवि क्ते ई । इस प्रशार्‌ श्रं प्रकृति, श्रवस्या श्रौर सषि क पाँच पाँच রহ दोने हैं, जा नीचे दिये जा रहे हैं। श्नमें रूपफः की फ्थावस्त पूर्ण विस्तृत, ियसिन शरीर रमणीय चन नातं है । রি अशथु-प्रकृतियाँ--- -“ १ बीच-मुस्य फल का कारणभूत क्यासाग, जिसका पहले बहुत श्ण म स्न न्न्य जाता है और आगे पष्ट कमर विहत होता जाया है।




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