तुलसी और उनका काव्य | Tulsi Aur Unka Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
355
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुलसी और उनका फाञ्य
पातक पीन, छुदारिद दीन, मलीन धरे कथरी करवा है।
लोक कहै, विधिहु न लिख्यो सपनेहू नहीं अपने वर লাই ॥
राम को किंकर सो तुलसी समु भेहि भलो कहिवो न रवा है ।
ऐसे को ऐसी भयो कवहू न भजे विन वानर के चरवाहै ॥
(कवितावली )
मातु-पिता जय जाय तज्यो विधिहु न लिखी कछू भाल भलाई।
त्तीच निरादर भाजन कादर कूकर टूकन लागि ललाई।॥
(कबितावली )
जायो कुल मंगन वघावनौ वजायौ,
सुनि भयो परिताप पाप जननी जनक को ।
बारें ते ललात बिललात द्वार-द्वार दीन,
जानत हौ चारि फल चारि ही चनक को ॥|
(कचितावली )
जाति के सुजाति के कुजाति के पेटागि बस,
खाये दूक सबके विदित बात दुनी सो ।
(कवितावली)
छाछी को ललात--
(कवितावली)
हुतो ललात कुसगात खात खरि मोद पाइ कोदौ कने । ¢
५ (गीतावली)
चाटते र्यो स्वान पातरि ज्यो कवं न पेट भरो ।
(विनय-पत्रिका)
जननी जनके तञ्यो जनमि करम चिनु विधिं सृज्यो श्रवडेरे,
कफिरेड ललात विनु नाम उदर लगि दुखड दृखित मोटि हेरे ।
(विनयपत्रिका)
वाल दसाहूँ न खेल्यों खेलत सुदाउं में ।
(विनय-पत्रिफा)
स्वारेय के साथिन तथ्यो तिजरा को सो टोरक भ्रीचर उलटि न हेरो ।
(विनय-पन्निफा)
द्वार-हार दीनता कही काढ़ि रद परि पाहूं ।
ह दयालु दुनि दस्र दिसा दुख दोप दलन छम, कियो न् संभापन काहूँ ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...