रिसर्च मेथोदोलोग्य | Research Methodology

Research Methodology by बी. एम. जैन - B. M. Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सामाजिक अपुतघान को भ्रक्ृति 5 दहीपी है तो वह उन कारणों बन पता लगनि की कोशिश करता है जिनके फलरनरूप बहू घर्टना घटित हुई, उदाहरण के लिए जघन्थ अपराध, चोरी, बलात्कार आदि | इर्न घटवाओों के पीछे कई कारण हो सफत हैं. जले चोरी का कार गरीबी हो सकत। है तो ग्र१९घो के पीछे सामाजिक बीता।बरण उपरदायी हो सकता है । (3) चनीन परिस्थितियों कल उत्पन्च होना. (प्रकट पंड€ 0 हाट्त ८णाऐणाई) जीवन में चाचा प्रकार को परिस्थितियाँ पंदा होती हैं जिंपके फाराइनरूप नवीन समस्थाएँ खड़ी हो उ०्ती हैं । एक समा।र्ज-शास्नी इनकें विवेचन एवं निशनेषण में सक्तिय हो जाता है । चह सथुदायो, सभी का अध्ययन करता है, उनको भ्रदतो और शिवाजी का सहरई से विश्लषण करता है श्रौर अन्त से तथ्यी सहित प्रतिवदत भ्रस्तुव करता है। इस प्रकार नवीन घटनाएँ और परिस्थितियों उसके अनु्लान को पृच्स्‍भुमि बन जाति हैं । (4) नेवी प्रसालियों को खोज तथा श्राचीन प्सालियों की परीक्षा (106 पॉडि९0श2ा9 0 प्राट्छ प्रा£्ी1005 पाप फिए. छघाएपानपिणा 0 00 प्राटरिा 05 दे सामाजिक शनुसघान के श्रन्तर्गत सो के सावनो में बरावर अनुसंधान करने को आावस्वकता होती है । इससे अनुसघान को अधिक शुद्ध एव उपयोगी बचाया जा सकता है। ऐना अर्चुसघान भान सामाजिक घटनाओं का अनुसबोन ने होकर सामाजिक भतुसघान प्रा लियों का ब्रनुलबान होता है । इसकी नावश्यकता, समाज में उत्पल हुई तवीरच समस्थाओ और आधुनिक यत्रो तथा साथनों को प्रभात के कारस है । साधाजिक अवुसधघान को आधघारसुत सान्थताएं (छव5० 355घ्ा्ाफृधिणाड 0 50तंबरा ९५९४0) (3) कार्य-बनरर का सम्नन्व [िला8ाणाडु 0 टाइट शाएँ टिट) नामाजिक श्रचुसबान में यह भाव कर चला जाता है कि सामाजिक धटने।ओ के बीच कारथ-का रे का सम्बच्च है । यदि यह कार्य-क। रस का सम्बन्ध स्यापित नही होत। है तो सामाजिक घटनाओ को नहीं मम जा सकता । उदाहरण के लिए जहाँ निर्धचत। होगी वहाँ अपराध भी होगे । अत यदि अपसधो को दूर करन है तो सबंप्रथभ गरीवी को दर करना होग। । यदि जनसंख्या वृद्धि के काररत अर संत व अधिक्षा है तो लोगो को पर्व निवोजन को जोन करवाना होगा, इसके, सहन को समकाना होगा तभी जनसंख्या वृद्धि पर परिवार नियोजन के तरीकों द्वारा रोक लगाई जा सकेगी । (2) चिष्पक्षत। को सम्मवबना (हि०5आतिविछि घी. पापा दिशा ) सामाजिक अतुसधघान में अतुसबानकर्ता और विषय दोनो ही सम्मिलित हैं । किसी विषव का अन्ययन तभी सम्भव है जब अपुसधानकर्ता निष्पक्ष होकर उसको जानकारी करे । उस्तकी €वथ की भावनाएं, पूर्व वार एँ तथा ०यव्तिगत विचार खतुसनान से परिलक्षित चही होने चाहिएँ । प्राय देखा गया है कि अतुसलाचकर्ता अपने चिरीक्षण और लेखन में तथ्स्थ होता है । नह वस्वुस्थिति का अवलोकन कर उत्तकें विभिन्न पहुलुम्ों की वारीको से छाववीन कर, निणय पर पहुंचने की कोशिश करी है ।




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