हिंदी साहित्य : युग और प्रवृत्तियाँ | Hindi Sahitya Yug Aur Pravritiya

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Hindi Sahitya Yug Aur Pravritiya   by शिवकुमार शर्मा - Shivkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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< हिन्दौ साहित्य : युग झौर अवत्तियों विभाजन, काल सीमा निर्धारण, काव्य धाराशों के वर्गीकरण, काव्य घायमरो के मूल स्लोतो के सकेतीकरण पादि को संदेह की दृष्टि से देखता है भोर उसका ऐसा व्यवहार समीचीन भी है। शुक्ल जी द्वारा इतिहास के तैयार करने के समय मे हिन्दी का प्राचीन साहित्य प्राय भद्गात, प्राप्य प्मौर धश्रकारिवेया। उस समय प्राजक हिन्दी जगत का विकसित प्रनुसघाने भपनी शैशव भवस्या में भी नही था । भत उनके सामने एक सुवैशानिक इतिहास के लिए भपेक्षित समृद्ध व सुपुष्ट प्राघारभूत सामप्री का भ्रमा था। प्रत उरु कल्पना भौर भ्रनुमान का भाश्रय तेना पडा । दते तथ्य निरू दण श्ौर तत्सम्बन्धी निष्कर्षों के श्रतिपादन में न्यूनताो व अुटियों का रह जाना स्वाभाविक था। प्रपर्याप्ठ सामप्री के कारण उनके इतिहास में एकपक्षीयता का भा जाता मी भनिवार्य था । इन परिसीमाशों के बावजूद भी हिन्दो-साहित्येतिहास- परम्परा में शुक्ल जी का इतिहास मील के पत्थर के समान है । यह भपने विषय का- सर्वप्रयम इतिहास है जिसमे प्रत्यन्त व्यापक सूक्ष्म दृष्टि, विक्राप्तवादी दृष्टिकोण, विशदं विवेचन व विश्लेषण तथा तर्कानुमत निष्कर्ष एकत्र मिलते हैं ॥ भ्राजक हिन्दी साहित्य के इतिहास के विशाल भवत की सुदृढ नीव भप्रतिम तथा सशक्त प्रासोवक एव समर्थक सक्षम इतिहासकार प्रावायं शुक्ल ने रख दी थी ! हिन्दी सािव्येतिदप्-षखला मे भ्रावायं हजारो असाद द्विवेशे के प्रन्यो-- हिन्दी साहित्य की भूभिका, दिन्दी साहित्य - उद्भव भौर विकास तथा हिन्दी साहित्य का प्रादि काल प्रादि एक नवीन दिशा को भ्रस्तुद करते हैं । इनमे एक नवीन दृष्टि, नूतन सामग्री भौर भ्भिनव विवृति ऐै। प्राचायें शुवल ने प्रत्येक युग के साहित्य की प्रवुत्तियो के निर्धारण में गुगीन परित्त्ितियों को प्रमुखता दी जबकि प्राचार्य द्विवेदी मे एस देश की प्राचीन परम्परापों, एतद्ेशीय सस्कृति के धारावाहिक रूप, दास्त्रीय एव लोक परम्पराभर के व्यापक सदर्म में प्रत्येक युग के साहित्य का मूल्दाश्न किया 4 उदाहरणार्ष द्विवेदी जी ने सप्रमाण सिद्ध किया कि हिन्दी साहित्य में भक्ति का झानदोलन न तो निराशाजन्य परिस्थितियों का परिणाम है भोर म ही यह इस्लाम चमें की प्रतिक्रिया की उपज है बल्कि भारत के दर्शन, घर्मं व साधना वा स्‍्रशल कऋमात्मक प्रस्फूटन है। इसी प्रकार उन्होंने यह प्रमाणित किया कि सन्त मत पर विदेशी प्रभाव की कोई छाया नहीं है प्रत्युत्‌ सन्त साहित्य का मूल नाथो भौर छिद्धो की वांणियों में निहित है। उन्होंने प्रेम काव्यो का स्रोत सस्कृत, प्राकृत भौर प्रपभ्नश काव्यों की प्रेमात्मक काब्य झूढ़ियो भौर परम्परापो में खोजा । * हिन्दी साहित्य का आदि काल” द्वारा उन्होंने हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक काल को एक भई दिश प्रदान - की भौर इसके साण-साथ समूचे भध्यकालीन प्ाहित्य को*एंक नवीज, व्यापक एव छदार दृष्टिकोण से देखने की प्तेरणा दी ॥ भत' हम वह सकते हैं कि आचाये द्विवेदी के অন্য, স্যরি के ओके, फोए परणप्एएफ, बाण पतटस्यपु्, एंयेयणात्यक अप्ययन कर उनका सानवठावादी दृश्दि से झतीव सहानुमूत्तिपुर्वके थुनराख्यापन डिया है । प्राचायं शुक्ल मे युगीत प्रवृत्तियों का विस्लेषण केवल एक पक्षीय परिस्थितियों के




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