आर्थिक विकास के सिद्धान्त | Arthik Vikas Ke Siddhant
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
540
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डब्ल्यू. आर्थर ल्यूईस - W. Arthur Lewis
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय হও
भी किया गया उसक्रा হীহ ঘল নহী নিৰক্যা | হার হুতী विषय-विभाजन वे
ग्राधार पर विकास मे तात्फालिक कारणों की जाँच करने वी आशा श्र्थदास्पियो
से वी गई हो, लेकिन उन्होंने इस ओर वभी-वभी ही ध्यान दिया है । प्रधशासिवरियों
कै प्रभ्ययन क विपय विशेषज्ञता भ्ौर पूँजी रहा है । उर्होने गतिशीनत,,
आविष्कार भ्रौर जोसिम उठाने की प्रवृत्ति के महत्व पर भी जोर दिया है भौर
मितोषपयोग की इच्छा से सम्बन्धित तर्को बा सावधानी स प्रौर ढग से विश्लेषण
किया है। बुछ प्रयंशास्त्रियो दे सस्थानों वे प्रध्ययन बरने का प्रयास किया हैं,
विश्ेषवर १६वी शताब्दी वे प्रर्थ शास्प्रिया ने लगान, ज्येष्ठ पुत्र वे उत्तराधिवार
या मिश्रित पूजी, वम्पनी सम्बन्धी कातून वे उल्लेख किये हैं । बीसवी हताब्दी
कैः उत्तराद्ध में भ्र्य शास्तियों ने इत লিনা में दिलचस्पी लेना छोट दिया भ्ौर
यहाँ तक भ्रधिकारपूर्वक वहा जाने लगा कि इन विपयो पर विचार बता भ्रर्थ-
शास्त्रियो वे! लिए उचित नहीं है, यह सारा क्षेत्र रामाज-श्ास्त्रियों, इतिहास-
बारो, विश्वासों का श्रध्ययन करने वालो, विधिवेत्तामो, जीव विज्ञानियों या
भूगोल-शास्त्रियों वा है। लेकिति उन सबने इन विपयो पर केवल एक नजर
ही डाली है प्रौर यहां-वहाँ इनवे सम्बन्ध मे एकाथ बात बह दी है । ऐसा लगता
है कि आधिव' सस्यानों वा ग्रध्ययत समाज झास्त्रियो व श्र्थ झास्त्रियों पर छोड
दिया प्रौर श्रवं-शास्त्रियों न यह विषय समाज शास्सत्रियों पर छोड रफा है । ऐसी
स्थिति में जबबि सामाव्य प्रवृत्ति इस क्षेत्र वो दूसरों पर छोड देने कौ है, यदि
मैं इस विषय का सामान्य सर्वेक्षण करने वा प्रयत्न बहू तो मेरे साहस पर
किसी वो ईर्प्पा नही होगी । बल्वि अगर में इसके तत्त्वों ओर सम्भावनाओों का
चच्चा चित्र भी अस्तुत कर सका तो शायद भविष्य में लोग इस पर भौर
चाम बरेंगे। =
भ्रनुकरुलता-शम्बन्धौ प्रश्न प्रमिव विकासे श्रश्नों से भ्यिक्त सरल हैं ।
यह इसलिए है कि प्रवशास्य फा गरितरे सिद्धातो की भाति बनुकुलता वे
प्रश्न भी सरल उदष्टरणो मे श्राधार पर परिणाम निकालकर हल कियेजा
शउते है। जैसे एव या दो सरल सामान्य निष्कर्षों के भ्राधघार पर यह बहूना
मुष्क नही है कि वुछ अन्य विश्वासो रोर सस्यानो शय भेदा द्रगती रुद्रि
और सस्थान विवास मे भ्रधिव रादायत्र बयो होते है । ये सामान्य निष्पर्ष इस
अनार मे हैं जैसे पूंजीनिवेश वी प्रवृद्धि तव भ्रधिक्र होती है जद व्यवित भ्रधिद
बस्तुएँ प्राप्त करता चाहो है, या अगर उन्हें पता होता है जि তলব द्वारा
अचाई धन-राशि सामान्य सम्पत्ति बरार नहीं दी जाएगे भोर पूँजीनिवेश के
अदते मिलने বাজ লাস वा उपमोय वे स्यय वर सरेंगे या उत्हे सहयोगी साथनों
को परीदने या विराये पर सेने बो रवतन्त्रता प्राप्त होगी | एसी समस्याप्रो का,
जो प्रॉवड़ो बे हप में रखो जा सती हो, प्र्यात् जित पर गणितीय विधि से
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