श्री भागवत-दर्शनं (खंड -३८ ) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 38 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 38 ] by श्री प्रभुद्त्तजी ब्रह्मचारी - Shri Prabhudattji Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम-श्याम का नाम-करण [ ८६५ ] गमैः पूरोदितो राजन्‌ ! यदूनां सुमदहावपाः | तरलं जगाम नन्दस्य वसुदेवभ्रचोदिवः }% (श्रीमा० १० स्क० ८०१ श्लोक) प्य एक दिवस वदेव पृरोहित गर्गं॑बुललाये | करि पूजा सतार विनययुत कचन सुनाये॥ बोले--य॒स्वर । আজ, কার দীন নু जे । तह“ दे बालक यपि नाम तिनके षार জান ।। शोरि बचन सुनि गर्ग मुनि, भति ही आन-्दित भये। पोयी पत्रा वोध्कि, तरत नन्द बजह गये॥ समस्त हित के कामों में जो आगे रहता है, वही पुरोहित कहदू- लाता है । वेद को मानने वाले वर्णाश्रमियों का कार्य पुरोहित के बिना चलता नहीं। यही नहीं, एक प्राचीन परिपाटी है कि अपने पुरोहित के कुल में कोई रहे, तो चज्ममान को तब तक दूसरे पुरो- हित से धार्मिक छत्व न कराने चाहिये। महाराज मरुत्त और देवगुरु ब्रहस्पति के सम्बाद्‌ से यह वात स्पष्ट हो जाती है । ## श्वीशुकदेवजी कहते हैं--/राजनू ! यादवों के पुल पुरोहित प्रत्यन्त महा तपस्व श्रीगर्गंजी थे | वे वसुदेवजी की प्रेरणा शे नम्दभी के ग्रज मे गये ।” वि




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