नवीनता के अनुगामी | Naveenta Ke Anugaam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नवीनता के अनुगामी ३
दैनिक खान-पान में भी देखते हैं कि एक ही तरह का शाक
रोज-रोज साधारण प्रकृति के मनुष्य को अच्छा नहीं: छूगता,
रहन-सहन व वेष-भूषामे मी वे निय एक हौ दंग को पसंद
नहीं करते ।
यह तो साधारण प्राणियों के छोकिक रुचि का प्रश्न है,
किन्तु वास्तविक जाग्रत आत्मा का स्वभाव हैं कि वह नई-नई
समस्याओं को सोचती है, नई-नई भावनाओं को नये २ दृष्टि-
कोणों के आधार पर विचारती है, यह उसके जाग्रत होने का,
गतिशील बने रहने का प्रवर प्रमाण दै । जहां जीवन में सम्यग्
गति नहीं है, स्थगन है, वहां वेचारिकता नहीं है, नवीनता नहीं
दै तो वैसा जीवन, जीवन नदीं, उसे मृत्यु का दूसरा नाम कह
सकते हैं | वास्तविक नवीनता में कुछ ऐसी ही आकर्षण शक्ति
है कि अनायास ही विकासशील व्यक्ति की अन््तर्बति उस
ओर झुक जाती है । आप जानते दैः कि वर्ष के सभी दिन एकस
होते हैं, किन्तु आप लोग कुछ दिनों को नये दिन कह कर
मानते हैं, यह क्या है--नवीनता के प्रति छिपे आकर्षण का
प्रकारान्तर प्रकटीकरण का आभास ही त्तो। इससे यह भी .
स्पष्ट होता है कि मनुष्य सदेव सही नवीनता के प्रति सजग
रहता दैः। ।
अव प्रश्न उठता है कि नवीनता के प्रतिः यह आकर्षण घृति
मनुष्य के हृदय सें संल्म क्यों हे ? जीवन में इस धृति से पयां
कोई लाभ सी है ९ ।
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