श्रीपाल | ShriPal

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ShriPal by कन्हैयालाल जैन - Kanhaiyalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रोपाल ঙ্‌ रोग स्पशे से बचाने के लिए अ्रच्छी तरह वखाच्छादित करके घोडे पर बैठ गई । कुष्टियो ने रानी को लेकर प्रस्थान किया, पर अभी अधिक दूर नहीं निकल पाये थे कि एक ओर से बडी धूल उडती दीख पडी और कुछ ही काल मे अश्वारोही सैनिको के एक भुंड ने उन्हे चहुँ ओर से घेर लिया । उनमे से एक ने आगे बढ कर उन्हे ठहरने की आज्ञा दी । कुष्टियों के ठहरने पर उस अग्रणी ने कहा--क्या तुमने इस मार्ग पर किसी सत्री को एक बालक लिये जाते देखा है, यदि देखा है तो कहो वह किस ओर गई है ” । कुष्टियो ने कहा “नहीं महाराज हमने किसी स्री आदि को नही देखा है श्रप्रणी--“मालूम होता है तुम सत्य नही बताते बह জী अवश्य इसी माण से गई है। सम्भव है कि तुमने उसे छिपाया भी हो और इसी कारण शायद न बताते हो। यदि सत्य न कहोगे तो हम तुम्हारी तलाशी लेकर उसे निकालेगे ” | कुष्टि--अरे महाराज हम तो कुष्टी है हमे किसी खत्री से वा उसके कारण सत्यासत्य भाषण से क्या लाभ ? यदि आप नही मानते है तो सहष हम लोगों मे ख्ली को खोजिये पर यदि आप को भी हमारी वायुरपर्श से यह रोग लग जाय तो फिर हमे दोष न दीजियेगा । और यह भी स्मरण रखियेगा कि फिर आपको भी हमारे समान मारा मारा फिरना पड़ेगा” । उस श्रश्वारोही ने विचारा नौकरी करते है तो क्या इसलिये थोडो कि अकारण ही अपने प्राण देतेकिरे। इनी खोज पछाड़




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