जैन धर्म सार | Jain Dharm Saar

Jain Dharm Saar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ है। उत्तर दक्षिण सब हो प्रान्तों के जैन साहित्यकार प्रखर विद्वानों के नाम आज भी विद्वतृसृष्टि की जिह्ना पर अंकित है! श्री सिद्धसेन दिवाकर, श्रौ समन्तभद्राचा्ये, श्री हरिमद्र सूरि, श्री अकलंक भट्ट, श्री हेमचंद्राचायं, श्री जिनसेनाचार्य, श्रो नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, श्री वादिवेताल शांतिसूरि, आर्य मलयगिरि, श्री मल्लवादि सूरि, श्री मल्लिषेण, पूज्यपाद, विद्यानंदी, श्री वादिदेव सूरि, श्री हीर विजय सूरि, श्री विजयसेन सूरि और महा महोपाध्याय न्यायाचार्य श्रो यश्ञोविजयादि अनेक घुरन्धर विद्वान हुए हैं जिन्होंने व्याय-तर्क, काव्य, दर्शोनादि साहित्य के सब ही प्रजा के सर्वोदियकारो अज्ों में अनुपम साहित्यरचना की है, ऐसा कहना कोई अत्युक्ति भरा कथन नहीं है । विश्व के पदार्थदरशत एवं चस्तुविज्ञान पर तो जैन दरोन का अत्यन्त ही सूक्ष्म अनुसंधान एवं अनुप्रेक्षण है। समस्त दर्ेनों की पदार्थविज्ञान संबंधी मान्यता में भूल निकाल कर सब दर्शनों को दवाने की आशा रखने वाला, आज के युग का अन्तोखा दर्शन जो भौतिक विज्ञान (ध०0०प ३०५००७९) है, उसने थोड़े ही वर्षों में अनेक आइचयेंजनक अन्वेषणों द्वारा सारे संसार का चक्र फिरा दिया > रै वह विज्ञान अनेक अनुभूति के प्रयोगों (प:७७४77७1॥७) के पदचात्‌ प्रगति साधते हुए अणु परमाणु की मान्यताओं (400050 € 200190019 ००४) पर पहुँचा है और इस निर्णय पर आया है कि सारे विश्व के समस्त पदार्थों का निर्माण इसी -श्रणु-परमाणु पर श्रवलम्वितत है । श्रणु के विद्लेपण मे अरणे वदते हुए (६160008 & 01०8.) অতীশ, এর সি




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