व्याख्यान - कोलम्बो से अल्मोड़ा तक | Vyakhyan - Kolambo Se Almoda Tak

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Vyakhyan - Kolambo Se Almoda Tak  by स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ प्राची से प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान तत्त्वानुसस्धोन के प्रवल मूसलाघात प्राचीन वद्धमूल सस्कारो को शीशे की तरह चूर चूर किये डालते है, जव कि पाश्चात्य जगत्‌ मे घमं केवर मूढ लोगो के हाथ मे चखा गया है, जौर जव किं ज्ञानी रोग घर्म सम्बन्धी प्रत्येक विषय को घृणा की वृष्टि से देखने लगे हैं, ऐसी परिस्थिति मे भारत का, जहाँ के अधिवासियों का घर्मजीवन सर्वोच्च दार्शनिक सत्य सिद्धान्तो द्वारा नियमित है, दर्शन ससार के सम्मुख भाता है, जो भारतीय मानस की धर्मविषयक सर्वोच्च महत्त्वाकाक्षाओं को प्रकट करता है। इसीलिए आज ये सब महान्‌ तत्त्व---असीम अनन्त जगत्‌ का एकत्व, निर्गुण ब्रह्मवाद, जीवात्मा का अनन्त स्वरूप और उसका विभिन्न जीव-शरीरो मे अविच्छेय सक्रमणरूपी अपूर्व तत्त्व तथा ब्रह्माण्ड का अनन्तत्व--सहज ही रक्षा के लिए अग्रसर हो रहे हैं। पुराने सम्प्रदाय जगत्‌ को एक छोटा सा मिट्टी का लोदा भर समझते थे और समझते थे कि काल का आरम्भ भी कुछ ही दिनो से हुआ है। केवल हमारे ही प्राचीन धर्म-शास्त्रों मे यह वात मौजूद है कि देश, काल और निमित्त अनन्त हैं एवं इससे भी बढ़कर हमारे यहाँ के तमाम धर्मतत््वों के अनुसन्धान का आधार मसानवात्मा की अनन्त महिमा का विषय रहा है। जब विकासवाद, ऊर्जा सधारणवाद (0075०८४४४०४ ० 78०7) आदि आधुनिक प्रवल सिद्धान्त सब तरह के कच्चे घर्ममतो की जड मे कुठाराघात कर रहे हैं, ऐसी स्थिति मे उसी मानवात्मा की अपूर्वे सृष्टि, ईश्वर की अद्सुत वाणी केदान्त के अपूर्वे हृदयग्राही तथा मन्‌ की उन्नति एव विस्तार विधायक तत्त्व समूहो के सिवा और कौन सी वस्तु है जो शिक्षित मानव जाति की श्रद्धा और भक्ति पा सकती है ” साथ ही मैं यह भी कह देना चाहता हूँ कि भारत के बाहर हमारे धर्म का जो भ्रमाव पडता है, वह्‌ यहाँ के घमं के उन मू तत्त्वो का है, जिनकी पीठिका भौरनीव पर भारतीय घर्म की अट्टालिका खडी है। उसकी सैकडो भिन्न भिन्न शाखा-प्रशाखाएं, सैकडो सदियों मे समाज की आवश्यकताओ के अनुसार उसमे छिपटे हुए छोटे छोटे गौण विषय, विभिन्न प्रथाएँ, देशाचार तथा समाज के कल्याण विषयक छोटे मोटे विचार आदि वातें वास्तव में 'घर्में' की कोटि मे स्थान नही पा सकती। हम यह भी जानते हूँ कि हमारे शास्त्रो मे दो कोटि के सत्य का निर्देश किया गया है और उन दोनो मे स्पष्ट भेद मी चतलाया गया है। एक ऐसी कोटि जो सदा प्रतिष्ठित रहेगी-- मनुष्य का स्वरूप, आत्सा का स्वरूप, ईदवर के साथ जीवात्मा का सम्बन्ध, ईदवर- का स्वरूप, पूर्णत्व आदि पर प्रतिष्ठित होने के कारण जो चिरन्तन सत्य है और इसी भ्रकार ब्रह्माडविज्ञान के सिद्धान्त, सृष्टि का अनन्तत्व अथवा यदि मधिक . ठीक कहा जाम तो प्रक्षेपण का सिद्धान्त और युगप्रवाह्‌ सम्बन्धी अद्भुत नियम आदि शाइवत सिद्धान्त जो प्रकृति के सार्वभौम नियमो पर आधारित हैं। द्वितीय कोटि:




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