धर्म-रत्न-प्रकरण [द्वितीय भाग] | Dharma Ratna Prakaran [Bhag 2]

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Dharma Ratn Prakaran Bhag 2 by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेत के भंग ९ ----------=------------------- ~~~ হলীছাহ कर सोश्च फो-गया 1 मद्रदान सेठ भी चिरकाल सस्यस्तय की प्रभावना करता हुवा खत पालन स्पे (स्वगो गया) सुख का भावन हुआ | इस प्रकार जागन सुनने में रसिक, चने हुए सुदश्शन ने क्र छ फल पाया अतः हू भवंयजनो तुम भी धर्मद्र से की घाटी रूप धरम धर ति में यत्नवान बनो । > र .: “ इस भांति सुदर्शन सेट फी छथा है मेमयमेषश्यरे-व्रपाण सम्म पिारे१,॥ ३५ ॥. . . अप्‌ पररय सिग कदत ६ै:-- रन किया य आकन्‌ रप प्रघसं सद कदा जवर जानन नामक दूसरे भेद का बणेन करने फे लिये गाया का उत्तराव कदते है 1 “ मूल का अथ-पतों के मंग, भेद और अतियार भली मांति च} टीका কা অধ গল याने अयुत) जिनका कि स्वरूप शसो गायाप्रनें अदर च अतिचप द्िःप्ररताव मं, करने मै आन ` वाला है, उनके: भंव प्दुचिष्ट. सिचिहेण”' आदि अनेक भरफार्‌ उनको सम्पक याने शाल्रो क्त विधि से जाने योने समझे म 1 * याया मंत इस प्रकोर -है- छः मंगी। नवर्भगी: -हर्कवीस- ' भंगी, ऊनपचास मंगी और, एक्ो सतालीस भंगी) 5. « बह्ां छः मँंगी.इस प्रकार हैः-- -. -. - “শিব स्रिविध प्रेमम भंग) द्विविंध द्विविध दूसरा भंग, द्विविध ' छुक्विध तीसरा सं्गी इकंब्रिध विविध चोँधा भंस, इकविय त्रिधिध पाँचवा भंगः इकविध इकमिय छुठा संग] .. | ^ ॐ




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