समालोचना तत्व | Samalochana Tatva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) परन्तु णेल्ली की उक्तियो में ही कविता के मइन्द का संपूर्ण भाव पाया ज्ञाता है। “ कविता डैदी शक्ति के समान काम करती है। घह मन को ज्ञायरित तया ऐसा प्रणस्त कर देती द॑ कि उसमें हजारो अज्ञात भावों का समादेश होता ह1ज्ञो प्रीति के कुछ ङ्ख दह तथा पघाशुद्ध करता है. ज्ञा कठपना की चद्ध জা है ओर इन्द्रिय-चोध के ठीद्रता उेता है. घद्दी उपयोगी ह 1 पृथ्वी क्तो नैतिक परिस्थिति कैसी होती यदि दान्ते. चे्राक. चाखर, सेच्छपिवर, मिदय्न इन्यादि स्याश्च घि्माव ने होता, यद हमारी कल्पना सा वष्िर्थंत हे) ` यह चात घिचार करने की द कि कविता का उद्देण उपदेण देना है था आनन्द देना | हारेस कदते हैं कि कविता के काम दोनों हैं घाइल्य और रापिन रा भी मत प्रायः यही है। चे कते हैं कि जो कूदित्ता उपयोगी है पघटद्दी आनन्डन्दायक ই 1 হাহইল জহর हैं कि आनन्द देना यद्यपि काव्य का एकमात्र उद्देश्य नहीं. तथापि उद्देश्यों में बद्द प्रधान है। आनन्द के साथ साथ बह उप- देश भी देखा है হাল का रुूचन्प कया दुख छा असापघ हो आनन्द ४1 /॥|” ५ &1 2५ 41 ধু 1 ^ ($| 41 41 „2 স্পা ষ্ঠ শী निर पन्त ध्यासन्द्र सम्यत न्दा । हम सिर पक आनन्द नदह मिलता | কল্িল্না ও शै न পা क क्‌ ड न ০ পি = 2াকিলহা রগ कक इान्द्रया ख थे दन्न म सन्द) [कस्न বা धल्यानम्द ङ শি রি” श % छत: 1 न दह स्कः ह पर्न्नु उम्नम (नल नाप লালা हूं ৮৫ চর শা বু ऋ क = ऋ के समपर मिटाई खाने से हझानन्द्र मिलता কোল লাল £ লাল पूर {स्न का ग ना ক্লু र्ट ई ০ 1 শা खआंधिक समर লঙ্কা শ্রললী হল লি काज-दोपद शक ह च्व ६८४ ज शी [क ~ [ भा कहा লালা ই कछ आनन्द इच्छ ~ इन्द क रद्र হু




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