गोलातत्व प्रकाशिका | Golatattva Prakasika

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Golatattva Prakasika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) गोलतत्वप्रकाशिका ! फाटक खोलदेनेका वचन दिया और उसके खोलनेमे बत्त करनेलगे । प्रथम तो उन्होंने अपनी ऊुंजीसे उस फाटक की विलाई हटाई तत्पश्चात्‌ बलपूवंक उन कपार्टोकों कुछेक हटके मेरे घुसनेयोग्य संधि करदी । जब वे इस भांति फाटक खोलनेका प्रयत्न कररहेये उसी समय मेरी दृष्टि फाटकके ऊपरी भागमें पड़ी तो देखाक उसमें लिखा है कि इस फाटकके वननिदरि फणिनि, कलत्यायन, ओर पतंजलि ये तीन कि गर्‌ ह । उनकी कारीगरी तथा फटकर्के। इढताका वर्णन करभूनेमें में कैसा छाचार हूं জবা অনল में लंगडा लाचार होता है अस्तु ॥ अब मैंने छसनेका माग पाकर वाटिकाकं भीतर अवेश किया | प्रवेश करतेही उस नन्‍्दनवन सरीखी ज्ञानवाटिकाके कल्पवृक्षोपम वेलि वृक्ष हरे भेरे मेरी दृष्टि पड़ने छंगे । मिनकी शाखाओंपर वैठहुई रंगविरंगी चिडियाएँ अपनी मधुर मनोहर चहचहाटसे वाटिकाविह्यरी जनोंके आ- नन्दको पग पग प्र वदा रदी ई 1 वारिकाकी इस अटत अतुपम दो- भाकी देखतेद्दी ठिठककर में आनन्दुविह्लल हौ बोट उढा अरा यह कैसा मनोरम स्थान है-जहां अतिद्दी संसारी जीव अपना सय प्रकारका दुःख ताप भूलकर बणेनातीत सुखका अनुभव करसकतादै धन्य यह वाटिका, धन्य धन्य इसके रोपनेहारे।र्तना कहकर जव में आंग वढा तो मेरी दृष्टि सामने लगीहुई एक दाखछताकी ट्ट्वीपर पड़ी । भेंने जाकर दाखके कुछेक गुच्छे तोड़कर खाथ ! आहा उत अलौकिकः अनूढ मी दाखके स्वाद्कं में किसप्रकार बणीनकर उप्तके रसके अनभिज्ञ रोगेको समञ्चाञ क्या कभी कोर बह्मसुखा- मुभवी महापुरुष अपनी शक्तिमर वर्णतकरके भी संसारातरागी जनोंपर अह्म- युखके। भगट करसकति ! कदापि न 1 फिर भने यह जाननाचाहा कि इसकताका छगानेहारा फीनहे । इधर उधर घूमकर देखनेसे मुझे कुछ लिखा- इुआ और व््टीके सिरपर चिप्काया हुआ एक पत्र दिखाई पडा उसमे यद्‌ लिखा था फि इस खताके वीज बोनेद्वारे महार्षे वाल्मीकिशी हैं परन्तु उनके पीछे कालिदास भवभूति आदि अनेक भद्गपुरुषोने इसको सींच सींच लोकोपकारार्थ बढाया है ॥




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