तपोभूमि | Tapobhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० ˆ “ ˆ त्पोभूमि- तीर्थ मे आर्‌ धर रज वर्ष पर्यन्त वर रहे | उन्होंने अपने हाथ का कमल वहीं फेंक दिया । उस पुष्प की धमक से सब प्रथिवी काँप उठी । समुद्र में लहरें बड़े वेग से उठने लगीं। बह्मा के मुख से बाराह जी उत्न्न हुए श्रीर्‌ उन्होंने ब्रह्मा फे द्वित के लिये प्रलय के जल के भीतर से प्रविवी को लाकर जदा पुष्कर तीयं वना दै वहां स्थापित क्रिया और फिर अ्न्तर्धान दो गए |” इससे भली भाँति विद्वित होता है कि किसी काल में यह भूमि समुद्र के 'मीचे थी और कोई ऐसी भारी और मयड्ढर घटना हुई दै करि जिससे प्रथिवी का रूप बदल गया और यह भूमि जल के मीतर से पानी के ऊपर हो गई । पौराणिक शब्दों में ब्रह्मा ने यहाँ रद कर इसके समीप के देश का निर्माण किया | आर्य ,सम्यता के पुष्कर चेत्र तक फैलने के पश्चात यह घटना हुई अतीत होती है । यद वदी राजपूतान की भूमि है जिसको बालू अब तक इस वात की सक्ती करि वद स्थल समुद्र के नीचे से मिक्रल र्‌ श्राया ह । रेखा मास होता ह कि मारतवषे मे सवसे षीद जो भूमि समुद्र से ऊपर आईं है वह यही हे । इसलिये यही अह्या की सबसे प्रतिष्ठित बंदी भी है। “ “ (२ वर्‌ की लङ्का का स्थान काँ प्रतीत होत है „ भमान संदिताः कौक्था दै्ि ध्ारंत्रोरसे १६ योजन पिस्तीसं दारुका नामक राक्ष्सी का बन था। उसमें वह अपने पति दाझक सिति {रहती. यी । यद दोनो वहाँ के लोगो को कष्ट देते थे। इसपर वे लोग दुखी होकर.ओव ऋषि की शरण में गए। उन्होंने शाप दिया कि यदि रात्तस लोग प्राशि को-दुख देगे तो प्राण-रहित हंगे | देवता लोग राक्षुसों से युद्ध की तैयारी करने लगे | दारुका को पार्वती का वरदान था कि जहाँ वह जाने की इच्छा करे वहीं उसका वन, महल और सत्र सामग्री सहित चला जावे। दादका मे इस वरदान के प्रभाव से स्थल सहित अपने बन को पश्चिम के समुद्र मे स्थापित करिया । रालृप्र लोग स्यल परम श्रतिये परन्तु जो मनुष्य नौका से समुद्र में जाते उन्हें पकड़ ले जाते थे और दण्ड देते थे | एक चेर इसी प्रकार एक वैश्य के नेदृल्व में बहुत से लोग नौकाओों में गए थे और তন বস কী হাঘধা ने कारायार में बन्द कर दिया। वैश्य ~ था और ब्रिना शिव का पूजन किये भोजन नहीं करता था চি बन्द हुए इम लोगों को छ मास व्यतीत हो गए! रा्तसों ने एक + दिन शिव जी का सुन्दर रूप वैश्य के सामने देख-कर अपने राजा से सय 0 “माचार कह सुनाया। राजा ने आकर वैश्य को मारने की आजा दी ५




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