भूदान-यज्ञ | Bhudan Yagya
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सवेदिय कार्यकर्तामोके साय विचार-विनिमय ड इ
जरूरत होती है। तो जिस प्रान्तका कार्यक्रम पूरा करके जिस प्रान्ते
लोग अगले सम्मेलनके छि मुझे किसी दूसरे प्रान्तमें भेजें; अर्थात् यह्
वत्तीस लाख करनेकी जो वात है, वह ओक सालके अन्दर पूरी करनेमें
ইল ভীর ভ जाय॑ तो बहुत अच्छा होगा।
दूसरे प्रान्तवाले काम न करें तो?
अवे जाहिर है कि हमने पच्चीस लाखका अगले साल तक
संकल्प किया। जिसलिओ अगर विहारमें ही हमने बत्तीस छाख জন
पूरे कर लिये, तो हमारे संकल्पमें कमी तो नहीं रहेगी। अगर यह्
व्यूह असफल रहा तो दूसरी वात है। लेकिन अगर सफल रहा तो
कोगी वाधा जुसमें नहीं होगी ओर दैवते-देखते दूसरे प्रान्तमे क्रान्ति
हो जायगी । कुछ ज्यादा करना मी नहीं पड़ेगा । अक मामीनं कटा
कि विहारमें काम होने पर भी, जितनी जमीन आप चाहते हैं आअतनी
मिलने पर भी, अगर दूसरे प्रान्तके लोग कुछ न करें तो वहां क्या
होगा ? तो मैंने कहा कि आपका यह सवाल मानस-शास्त्रके विरुद्ध है।
मानस-शास्त्र भिस तरह काम नहीं करता । लेकिन घड़ी भर कल्पना
करो कि दूसरे प्रान्तमें कुछ नहीं हुआ; तो वहां दो-तीन चीजें बनेंगी।
অন্ধ জী यह होगा कि अस प्रान्तके छोग बगावत करेंगे या यह होगा कि
वहांकी सरकार विहारका मसला हल होते देखकर कानून वनायेगी ।
तो या तो कानूनसे काम होगा या बगावत होगी, यानी राज्यक्रांति होगी ।
लेकिन जितनी बड़ी घटना अक प्रान्तमें हो और अुसका कोओ परिणाम
दुसरे प्रान्त पर न हो, भितेना छिन्न-विच्छिन्न मानव-समाज नहीं है।
त्किं मानव-समाजमें ओके जगहकी अनुभूति दूसरी जगह पहुंचती
है। और संवेदनाकी क्षमता जिस वक़्त काफी अच्छी है। हिन्दुस्तानमें
भी भौर वाहरके देगोमे भी । तो जैसी कल्पना करनेकी जरूरत
नहीं है, यह मैंने कछ कहा था | यह मैंने आप छोगोंके सामने
मेरा व्यूह रखा है और मेरी जो मांगें हैं वे भी आपके सामने
रखी है।
हरिजनसेवक, ३०-५-५३
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