श्रमणराज आचार्य देशभूषण महाराज | shramanraj Acharya Deshbhooshan Maharaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
यथाथ बातं
ऐसी स्थिति में ये दिगम्बर साध जो महात्रतों का पालन करते है वह
बहुत बडी बात है। यह समभता कि आचायें श्री में गुण ही भरे है और
उनमें एक भी अ्रपर्णता नहीं है उचित नहीं है। जगत मे परमात्मा के
सिवाय कोई भी निर्दोष श्रथवा बेएेव नही है। बुद्धिमान आदमी गुणदृष्टि
बनकर गुणो को ग्रहण करते हुए अपने को उज्ज्वल बनाता है। एक
भ्रग्ेजी विद्धान् ते कहा है :-
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दूसरे के दोषो को देखते समय कुछ आखें बन्द कर लिया करो तथा
उनमे विद्यमान सद्युणो के प्रति विशेष सदभावनापूर्ण दृष्टि को धारण
करो । चौबीस घटे में दित के समय एक बार करपात्र मे आहार लेने वाले
बाल ब्रह्मचारी इन तेजस्वी महात्मा के जीवन से विशेष सदाचार वं सयम
का सुवास भरा है । सज्जन पुरुष उस ओर दृष्टि देते हैं और अपने जीवन को
उस प्रकाश सें स्वच्छ बनाते है । इनके दवारा श्रहिसात्मक प्रवृत्तियो को अरसा-
धारण बल प्राप्त हुआ है तथा हो रहा है। वर्तमान युग की सबसे बड़ी
आवश्यकता यह है कि दु:ःखी ओर अआच्त जगत् मे ऐसे साधुझो से प्रेरणा
प्राप्त करे । हिन्दू सन््त श्री विनोवा जी ने कहा है कि “आज के विज्ञान युग
में सबसे बड़ी जरूरत और चाह इस बात में है कि करुणा का भरना फूट
पडे और अहिसा दासी न रहकर रानी बन जाय ।” (गाधी-जैसा मैंने देखा-
विनोबा ঘুণ ४२)
कल्याणदाता
यथाथ मे' महापुरुष अपनी मगलमय जीवनी के द्वारा जगत से शाश्व
तिक कल्याण का मार्ग बताते है । कवि कहता है :--
गंगा पण शशौ तापं दस्यं कतल्पतरुस्तथःा ।
पापं तापं च देन्यं च हन्ति सन्ते महाशयाः \
गंगा जल के शीतल जल मे स्नान करने वाला गगाभक्त मानता है
कि उसका पाप नष्ट होता है, चन्द्रमा की किरणों का आश्रय लेने वाले
व्यक्ति का सताप दूर होता है, कल्पवृक्ष के नीचे बेठने वाले व्यक्ति को मनो-
वाछित वस्तु प्राप्त होने से उसकी दीनता दुर होती है, किन्तु विशाल
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