विचार और अनुभूति | Vichar Aur Anubhuti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य और समीक्षा साहित्य का जीवन से दुद्दरा सम्बन्ध है : एक क्रिया रूप में, दूसरा ्रति- क्रिया रूप में । क्रिया रूप में वह जीवन की अभिव्यक्ति हैं, स्टि है; प्रतिक्रिया रूप सें उसका निर्माता श्रौर पोषक हैं | जिस प्रकार एक सुपुन्न श्रपने पिता से जन्म और पोषण पाकर उसकी सेघा और रक्ता करता है, इसी प्रकार सत्साहित्य मी जीवन से प्राण और रक्त-सांस कर फिर उसको रस प्रदान करता है । जीवन की मूल भावना हे आात्म-रक्षण, जिसे मनोवैज्ञानिका ने जीवनेच्छा फहा है। श्रात्स-रक्षण के उपायों में सबसे प्रमुख उपाय श्रात्मामिव्यक्ति ही है | श्रतः क्रिया रूप में साहित्य श्रात्म-रक्षण झ्रथवा जीवन का मुक सार्थक प्रयत्न है । यही श्रमिव्यक्ति जब ज्ञान-राशि का सब्चित कोप वन जाती हैं तव अतिक्रिया रूप में मानव-जीवन का पोपण श्र निर्माण करती है । --उपयोगिता का जेसा मैंने श्रभी कहा, मचुप्य की समस्त क्रियाएँ के निमित्त होती हैं, प्रत्यक्त श्रथवा श्मत्यक्ष, सदी या ग़लत, उनका यही उद्देश्य दोता है--श्रौर वास्तव में उनकी सार्थकता भी इसी में है । श्रतएव हमारे प्रयत्नों का मूल्य की कसौटी यही है कि वे आात्म-रक्षण में कहाँ तक सार्थक होते हैं । यहाँ श्राच्म का थ्र्थ स्पष्ट कर देना ावश्यक है । श्रा्म-रक्षण का तात्पयं उस स्वार्थयुद्धि से नहीं हे जो श्रपने में ही संकुचित रदती है । सचमुच श्ास्म- रक्षण की परिधि में समाज, देश, विश्व सभी कुछ श्रा जाता है । अपनी रचा के लिए व्यक्ति को श्रपने वातावरण श्र परिस्थिति से सामशस्य स्थापित करना थ्निवा् है। व्यापक रूप में जो कुछ घर्स की परिधि में श्वाता है वद्दी सब श्राव्म- रक्षण की परिघि में भी आरा जाता है क्योंकि घर्म उन सभी प्रयत्नों की समछ्टि है,जो जीचन को घारण किए रहने के निमित्त होते हें-घ्रियते यः घर्मः । श्रतएव हमें प्रत्येक क्रिया या वस्तु का मुल्य परखने के लिए एक बात देखनी चाहिए : वह कहाँ 'तक 'धघर्मानुकूल है, भ्रर्थाद्‌ कहाँ तक जीवन के जीने में उपयोगी है ? जहाँ तक इस कसौटी का श्रश्न है, हमारी धारणा है कि इस चिपय में झास्तिक-नास्तिक, _ विश्वासी - वेज्ञानिक, गतिवादी «श्और प्रतिक्रियावाद़ी , किसी को भी मतमेद न होगा । परन्तु उपयोगिता की परीक्षा सब एक ढड से ११




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