समालोचक [भाग २] [अगस्त १९०३] [अंक १] | Samalochak [ Part 2] [August 1903] [No. 1]

Samalochak [ Part 2] [August 1903] [No. 1] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
অহা | ९४ , अकार क्ते अलेष्ठ मन घ्य दौ गये हैं जिनन्‍्हो ने उक्त ठयसूनों सें छी यकर अपन? जीवन वित दिया है! उक्र सिन्न नो इसी तरह के सनष्य ये | षन का जीवन केवल िद्याठयद- साय से हो ठ्यतौत हुख है । इस व्यवसाय से छाक्तर सित्र फी হল उन्तति हुईं कि इनके समय में उतनी सिख अड़ली को नही हुझे | प्ऩारतबर्ष और विखायत छे पठिन समाज -मे ठेस कोर स्थान नहीं है जहा डाष्छर भित्र र लास परिचित न हो | यह्‌ सद इनके विद्यामीरवसे हीं इञा है । भारतवर्षोय ऐत्तिहामिक व्यक्तियों में इस का সজল লা था | न दो अनन्तर बकुदेश में क्‍या प्ररतचप रमे कोद भारसवर्षीय प्रातत्ववेत्ता नछी हुआ | जो दो चरर हैं वे इन के ससकालीन छही दह सीर अव निज र ग्रहों लें वास करते हैं | मित्र की जीवनी बहुत वी है उन का लिखना इस समय नहो छोपसकतः, तीफो सक्षेप से कुछ दत्त लिखते हैं।- वि डारूर सिनत्र का जन्म कलकत्ता सें सन्‌ ९८२४ देंसदी से छुआ था| बालकाल में बाबू क्षेत्रथीष को पाठशाला में उपर गोखिस्द्‌ विक रो परशका में जच्ययनं करना भर रस्म किय । इन ॐ साथी दुर्गाचरण ला ये | कुछ दिनों बाद छाक्तर सिन्र पढ़ने में बहुत तेज निकले और खूब चित्त लगाकर पाठ्यालीय হু জী বল चिद्या हरली । गुरुजी तव ऊीर लोग डाफक्तर भिन्न को रछ्ने लगे कि यछ बालक अवश्य फोड स्वनासचन्य पुरुष होगा ! ईश्वर नै खव वाक्यो को सफछ किया, जनन्‍त मे डश्क्तर मित्र वैसे पी हुए !




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now