अर्हत् प्रवचन | Arhat Pravachan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सा प्रतिक्षण शिकार चना रहता है वह अपने आपको सदा पराधीन अनुभव करता हे। इस पराधीतता का कारण जैन शास्त्रों के अनुसार कर्म हे । जगत मे अनेक प्रकार की विषमताए हैं | आर्थिक और सामाजिक विपसताश्नो के अतिरिक्त जो प्राकृतिक) त्रिषमतार हँ उनका कारण मनुष्य कृत नहीं हो सकता | जब सब से एकसा आत्मा है तब मनुष्य, पशु, पत्ती, कीट और ब्ृक्ष-लताओं आदि के विभिन्न शरीरों और उनके खल, दुख आदि का कारण क्‍या हे ? कारण के चिना कोई कायं नदीयो सकता । जो कोई इन विषमताओं का कारण है वदी कमं है--कर्म सिद्धान्त यही कहता हे | जेंनों के कमंवाद मे ईश्वर का कोई स्थान नहीं है, उसका अस्तित्व दी नहीं है । उसे जगत की विपसताओं का कारण मानना एक तक हीन कल्पना हे। उसका अस्तित्व स्वीकार करने वाले दाशनिक भी कर्मों की सत्ता अवश्य स्व्रीकार करते दे। 'ईश्वर जगत के प्राणियों को उनके कर्मो के अनुसार फल देता है उनकी इस कल्पता मे कर्मो की प्रधानता स्पष्टरूप से स्वीकृत है | 'सव को जीवन की सुविधाएँ समान रूप से श्राप्त लं और सासाजिक इृष्टि से कोई नीच-ऊँच नहीं माना जाए-मानव मात्र मे यह व्यवस्था प्रचलित द्वो जाने पर सी मनुष्य की व्यक्तितत विपसता कभी कम नहीं होगी | यह कभी सम्भव नहीं है कि मनुष्य एक से बुद्धिमान ह, एकसा उनका शरीर हो, उनके शारीरिक अवयबों और सामथ्य में कोई भेद न हों । कोई स्त्री, कोई पुरुप श्रौर किसी का नपु सक होना दुनियाके किसी क्षेत्र से बन्द नहीं होगा | इन म्राकृतिक विपमताओं को न कोई शासन बदल सकता है और न कोई ससाज । यह सब विविधतायें तो साम्यवाद की चरम सीमा पर पहुँचे हुए देशों में भी बनी रहेगी । इन सब विपमताओं का कारण प्रत्येक आत्मा के साथ रहने वाला कोई विजातीय पदार्थ है. और वह्द पदार्थ कम हे । कर्म आत्मा के साथ कब से हैं और केसे उत्पन्न होते हैं ? आत्सा और कम का सम्बन्ध अनादि है। जब से आत्मा है, तब से ही उसके साथ कर्म लगे हुए हूँ । प्रत्येक समय पुराने कम अपना फल देकर शात्मा से अलग होते रहते हैँ और आत्मा के रागढ पादि मावो के द्वारा नये क्म वधते रहते & । यद क्रम तव तक चलता रदता दै जव तक अत्मा की भुक्ति नहीं होती जैसे अग्नि मे चीज जल जाने पर वीज वृक्ष की परम्परा समाप्त हो जाती है ইজ হী হান पादि विकृत भावों के नष्ट हो जाने पर कर्मों की परम्परा आगे नहीं चलती । कर्म अनादि द्वोने पर भी सान्‍्त है।




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