बालकाण्ड | Baalkaand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
भावार्य--सत-समाज को तीर्थंराज प्रयाग का रूप देते हुए तुलसीदास
कहते है किं सत-समाज श्रानन्द ग्रौर मगल का मूल है । यहु ससार मे सचमुच
चलता-फिरता तीर्थराज प्रयाग है, जहां राम-भक्ति रूपी गगा की धारा बहती
है, ब्रह्म-विचार का प्रचार ही जहाँ सरस्त्रती (नदी) है तथा विधि-निषेघमय
(यह करम करो यह न करो) कर्मो की कथा कलियुग के पापो को हरने बाली
यमुना है, श्रौर विष्णु तथा महए की कथा जहाँ त्रिवेणी के रूप मे सुशोभित दै,
जो सुनते ही भ्रानन्द श्रौर मगल की देने वाली है । उस सत-समाज रूपी प्रयाग
मे अपने धर्म भे श्रटल विश्वास ही श्रक्षय-वट है भौर शुभ कर्म ही उस तीर्थराज
का परिवार है। वह सत-समाज रूपी प्रयागराज सब देशों मे, हर समय सबको,
सहज ही प्राप्त हो सकने वाला है। जो कोई आदर-पूर्वक इसका सेवन करता
है, उसके सारे क्लेश नप्ट हो जाते हैं। वह तीथैराज अलौकिक और श्रकथनीय
है, वह् तत्काल फल देने वाला है श्रौर उसका भ्रमाव प्रत्यक्ष है ।
तुलसीदास कहते ह कि जो लोग इस सतसभान रूपी तीर्थराज का
प्रभाव प्रसन्न मन से सुनते है, सुनकर समभते है श्रौर फिर प्रेम के साथ उसमे
गोते लगाते है, वे इस शरीर के रहते हुए ही चारो पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम
और मोक्ष) प्राप्त कर लेते है ।
काव्य सोन्दर्य--अनुप्रास, रूपक और साग रूपक अलकार | सत-समाज
पर तीर्थराज प्रयाग का करिनना सुन्दर प्रारोप है ।
` भूल-मर्जन फक पेखिभ ततकाला । फफ होहि पिक वकड मराला ॥
मुनि माचरज फरं जनि कोई । सतसगति महिमा नहि गोई ॥ १।
बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ॥
जलचर थलूचर नभचर नाता । जे जड चेतन जीव जहाना ॥२॥
शब्दार्थं -मज्जन-~स्नान । पिककोयल । वक उनवगला । भराला= |
हस । गोर््-दछिपी हई । घटजोनीर=भ्रगस्त्य ऋषि । जहाना-संसार ।
भावायं- दत सत समाज रूपी तीयं राज-पयाग मे स्नान करमे का फल
तत्काल देखने मे श्राता है । इसमे स्नान करके कौए कोकिल वनं जाते है भ्रौर |
बगुले हस वन जाते है भर्थात् दुष्ट भी सज्जन बन जाते है। यह बात सुन कर
किसी की आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि सत्सगति की महिमा किसी से '
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