आत्मानुशासन | Atmanushasan

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Book Image : आत्मानुशासन  - Atmanushasan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ 9) 3 . , श जिस शरीरम পু कालकी अनिवाये गतिकां - ,, पट्टा बांधा - जावा है वह , | द ` ८ | ,.“ ८८ शरीए कैसा ई! ५२ | दूसरा दृष्टांत ९० धन सुखका साधन नहीं है ७४ | अचानक आजानेवाले काल रागट्वेप हूट जानेपर रं मात्र भा दूसरे सुखके साधन न होनेपर भी साधु जनाके असीम सुखो रहने का कारण ; ५५ परिचयाथ জাগি गुण ७६ | है जो अपनेको साधु पताकरं लोगोंको ठाते हैं वे साधु ने सममने चाहिये तपश्वरणादि काय 8 श सह- কক ঘা শীর্ণ? ঘন साधनभूत शरीरकी तो रत्ता करना उचित है इसका उत्तर ८० আনু कायादिकोंका: नश्वर सभाव ८१ जीते या भरते सुख.कभी नहीं है রঃ ८४ আদর ভুইলা असंभव ` श्नीर जीनेकी सणिकवा , . मदुप्य्ठी . र्ताका, शेना ७८ असंभव है = ४५ +,» ८६. से सावधान रहनेका उपदेश . ९१ , स्ीकी श्रनुपसेव्यता . ९३ शरीरकी क्षणिकता पृष्ट करते । উল भ्ात्म-द्वित होता' यानीं ***, धंधुजनों द्वारा जो विवाद्यादि उपकार होते हैं उन्हें अपकार सिद्ध करते हैं। * ९९ वंघुजन जव किं धनकी , मदद करते हैं, तो वे युए के कार्ण इए दुःख कारण कैसे दो सकते हैं इस भ्रमकों हटाते हैं. १००. युवावश्थामें विषयनसुख भोग- ` ` कर वृद्धावस्थामे धमे साधते की इच्छा रखनेवाढेसे कहते শশা १०१ ९७ ९८ विपयोंमें न फैंसकर पर- , | माथ अवृत्ति करमेबालोकी ^| दरल॑मता १०३ ` पीये दुः १०६;




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