शब्द और कर्मा | Shabda Aur Karma
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.5 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य और सवहारा १७
संकुचित सीमा से मुवत वर उसवी सामाजिद चेतना को जगाता है और मान-
वीय चेतना को अधिक व्यापव और गहरा बनाता है।
पूजीवादी समाज मे सवहारा वग की स्थिति और उसके वग संघप
के उद्देश्य के सदम मे साहित्य वी सहायक और उपयोगी भूमिवा पर विचार
करते हुए यह कहा जा सकता है कि सव हारा के पक्षघर साहित्य का उद्देश्य है,
(1) पतनन्षील बुजुआ जीवन पद्धति और मरणो मुख वुर्जुआ सस्कृति की
वास्तविकता वी छानवीत करना और उसकी कमजोरियों वा चिश्रण करना,
(2) समाज के सपूण जीवन के साथ वुर्जुआ जीवन पद्धति वी असंगति और
समाज के विवास मे बुजुआ समाज व्यवस्था और जीवन पद्धति के बाधक
स्वरूप वा उद्घाटन करना, (3) बुर्जुआ वग के सार्कतिय और राजनीतिक
प्रमुत्व के टुटने वी प्रिया ओर तोड़ने के तरीकों का वणन करना, (4) साभा-
जिक सम्ब थो की समग्रता के बीच सवहारा के जीवन सघप वा चित्रण करना,
(5) सवहारा दृष्टिकोण के अनुरूप एक अधिक मानवीय ससार की रचना की
कोशिश करना, (6) सामाजिक जीवन के यथाथ का चित्रण करते समय वग
सघप वी प्रक्रिया और रूप को समझना तथा वग सघप वे” प्रत्येक रुप के राज-
नीतिव प्रयोजन को पहचानना, क्योकि “प्रत्येक वग सघप राजनीतिक सघप
होता है” (7)सवहारा के सामाजिक संघप का चित्रण करते हुए सबहारा वग
की एकता वो मजबूत करने और उसे आगे बढाने वी कोदिश करना (8)
सवहारा को “मिथ्या चेतना से मुक्त करने और उसकी वग चेतना और मान-
बीय चेतना को विकसित करने का प्रयत्न करना और (9) सवबहारा को
इतिहास प्रक्रिया वी दिशा और गति का बोध कराते हुए उसके ऐतिहासिक
दायित्व का बोघ जगाना !
सवहारा साहित्य के स्वरूप पर विचार करते समय साहित्य की लोक-
प्रियता और कलात्मक श्रेप्ठता का आपसी सम्वबघ भी विचारणीय है। प्राय
लोकप्रियता और वलात्मव श्रेष्ठता वो परस्पर विरोधी प्रवत्तियो क॑ रूप मे उप
स्थित किया जाता है। लोकप्रियता को समकालीनता से जोडा जाता है
और कलात्मक श्रेष्ठता को कालातीतता से । कभी कलात्मक श्रेष्ठता को
लोकप्रियता का आधार माना जाता था, लेक्नि अब पूजीवादी व्यवस्था
की व्यक्तिवादिता के कारण कलात्मक श्रेष्ठता और लोकप्रियता का पाथवय
स्थापित हो गया है। कुछ व्यक्तिवादी रचनाकार आत्माभिव्यक्ति को ही
पर्याप्त समभते हैं, वे सम्प्रेपण को अनावश्यक मानते हैं। कुछ अय लेखकों के
अनुसार अभिव्यक्ति के लिए अब कुछ भी छेप नही है। कुछ ऐसे भी रचनाकार
हैं जी सम्प्रेपण को असभव मानते हैं । जाहिर है रचना सम्ब थी ऐस दृष्टिकोण
वे वातावरण म लोव प्रियता के लिए कोई जगह नहीं हो सकती । लोवप्रियता
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