त्रिलोक्य दीपिका (संग्रहणी सूत्र) | Trilokya Deepika (sangrahni Sutra)

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Trilokya Deepika (sangrahni Sutra) by मुनि माणिक्य - Muni Manikya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) , इंद्र चैंद्रमा-वे सूये प्रत्येक के चार्‌ चार अग्रमीहेषी हैं तथा: सौ- धपं वे इशान इन्द्‌ करसयाकेदो इद्र के प्रसेक के आठ आठ अग्रमहिपी हैं: दूसरें देवलोक से उपर देवी की उत्पात्ति नहीं होती हे, किंतु सनत्कृपारादिदेवलोक के इंद्र तथा देवों. को जब विपय वांछना होती हैं तव सोधर्म-व इंशान देवलोक হী অ परिग्द्दीता देवियों से दश॒योग्य रीति से उपभोग कहते हैं, अतः वहां अग्रमीहपी का अभाव है, पहिले वेंमानिक देवों की श्रायुस्थिति समुचय सेक्टर अब प्रत्यक प्रतर ऋ पृथक्र्‌ २ श्चायु स्थते कदी जायगा आर उसके लिय प्रथम प्रतर संख्या कहते हें; द्खु तरस दुष बरस ॥ च षष चड चर द्ग दगेय चठ + गावज्ज হাহ হন ॥ विस्रा पयरा उवारलाए ॥ १४ ॥ = ^. भावाथ।-मभिप्त प्रकार परम उपराउपरी मंजिल हाती रं ५१ ৮ ष्पे ¢ उसी प्रकारं देवछोक में भी उपराउपरी प्रतंर होते हैं, सॉँधमे आर इशान देवलोक के मिले हुए तेरह 'प्रतर गोलाकार ৪, . उनमें से प्रत्येक प्रतर के दरतिणाद्धं खड साधर्मन््र के दं आर्‌ ৭৬ ১৯০ उत्तराद्धं खढ इंशानेन्द्र के: हैं। दोनों देवलोक- के मिले हुए तरह




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