तत्त्वार्थ सूत्र | Tattvartha Sutra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )
महाराज के पीछे हुए हैं । तो फिर ভীম किन धास्फि
आधारस संग्रह याने सक्ष्मतास सवचिपयोका उद्धार होना
मान सके | इसी कारणसे दिगेवरियोंने हसे संग्रहित नहीं माना ।
जब ग्रंथकों ही संग्रहित नहीं माना तो फिर वे उसके कती-
को संग्रहकार केसे मानें 1 और जब कतो को संग्रहकार ही नहीं
माने तो उन्हें संग्रहकारोंमे अग्रगण्य केस कहें !, अथाव সরা
लोग जिस प्रकार इस श्ृत्रकों संग्रद्दित ओर ख़ज्कताको
उस्क्रट्टसग्रहकार मंजर कर उनकी मुक्तकण्टसे प्रशेता करते
है उस तरह से दिगवराने नहीं की, ओर कर सके भी नहीं |
दसरा कारण यह भी मालूम होता दे कि दिगेवरियों्म
जिस वक्त शब्दानुशासन बना होगा उस वक्त इस वत्ताथयत्र को
उन लोगोंने परीतोरस नहीं अपनाया होगा। जो कुछ भी हो,
किन्तु हपकी बात है कि वर्तमानसभयम इस सत्की अतांबर
ओर दिगेधर दोनों सम्प्रदायने अच्छीत्तरहसे अपनाया हैं।
ই इस सत्रकों बनानेवाले आचायमहाराजको
। अ्रथक्रता!| उतापरं उम श्रीमान् 'उमास्वातिजीवाचक
का आर दिगंबर लोग उमास्वामी' कहते ६।
नाम- (| अतांबरलोगोंके दिसावसे इन आचायेमहाराजकी
(( निर्णय |) माताका বান उम्रा' आर पिताका লাম
+ स्वाती थाहसीलिय आपका नाम उमरास्ति!
কাঠি পাঠ
जगतसमें श्सिद्ध हुआ। वेतांवर -सैग्रदायमें इन्हीं आचायमहाराजके
&।
৬.
= 4
९
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