श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagwadgeeta
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ভীত ६॥ - श्रीमद्धगवदरीतां २५१५६
फिर है भगवन् ! तुमने जो सुभे अध्यात्म, अधिभूत औरे अधियज्ञका
उपदेश किया ( देखो अ० ८ ) तथा देवयान ओर पितृथान इलादि
मार्गोका उपदेश किया (देखो अ० ८ श्लो० २४ से ३६ तक) औौर'
है भगवन् ! जो तुमने मुभे गुह्मतम राजविद्याका उपदेश किया ( देखो'
अआ० ६ ) रि है सगवन् | मेर इस प्रशनपर, कि ^“ बेक्तु-
महंस्यशेपेण दिव्या ह्यात्मविभृतयः” तुम अपनी विमूतियोंक्ी मुझे'
पृणैरूपसे कहे तिके उत्तरम तुमने “ अहमात्मा गुडाकेश ?' से
“ विष्टभ्याहमिदं कृत्नम ?” ( अ० १० श्लो० २० से ४२ तक )
इत्यादि बचनोंतक अपनी दिव्य विभृतियोंका उपदेश किया |
अब भर्जुन कहता है, कि [ माहात्म्यमपि चाव्ययम् ]
तुमने अपने अव्यय माहात्यको अर्थात् अक्षय महा ऐश्वय्योंका वर्णन
किया है सो मेंने विस्तारपृवेक श्रवण किया ।
शंका-- भगवानूने तो श्रपने मुखारविन्दसे कहा है, कि हे
अर्जुन ] मैंने अपने महान देश्व्थोो तुकसे झत्यन्त संज्षिप्तकरके
कहा है क्योकि भगवान् अ० १० के अन्तम अजुनसे कहचुके
« एष तुदेशतः प्रोक्तः ” ८ अ« १० श्लो० ४० ) अर्थात् मैंनें
अपनी विभूतियेकि विस्तारके कारण संक्षेपकरके तुकसे कहा और इस
श्लोकमें अर्जुन कहता है, कि “श्रुत्तो विस्तरशो मया? मैंने विस्तारपूव क
सुना। तोकहनेवाला कहता है, कि मने संदोपसे कहा श्नौर सुनने वाला `
कंहता है, कि मैंने विस्तारस सुना ये दोनों बातें परस्पर टकशती
. हैं और इनसे गीताशास्में अन्योन्य विरोधका दोष लगता है ऐसा क्यों ?
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