आचारांग | Acharang
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
रामलाल जैन - Ramlal jain
No Information available about रामलाल जैन - Ramlal jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आचाराग न
(१) जिस क्रिया को में करता हैँ वह मभसे
बन सकेगी या नहीं ? या फिर मेरी शक्ति के बाहर
को तो नहीं है ? क्योंकि यदि शक्ति बिना क्रिया
करने चलें तो कई बार श्रधबोच में रह जाना पडता
ই | इसलिए क्रिया चाहे कितनी ही सुन्दर हो तो भी
अपनी शक्ति विचार कर करना चाहिए ।
(२) में जिस क्रिया को करता हूँ, वह इच्छा-
नुसार ध्येय युक्त फल देगी या नहीं ? क्योंकि ध्येय
शून्य क्रिया में उत्साह, शक्ति, या साहस साँगोपांग ,
टिकते नही, श्रौर इसीसे वह् क्रिया सफल सिद्ध नही
होती । সাহা यहु है क्रि प्रव्येक कामके पीले कू
स्पष्ट ध्येय होना ही चाहिए |
(३) जो क्रिया में करता हूँ वह मेरा या किसी:
और का अनिष्ट तो नहीं करती ? बहुत-सी क्रियाएं -
देखने में सुन्दर, अपनी शक्ति से साध्य तथा थोड़ा-सा
इष्ट देने वाली होती है, तो भी जिस क्रिया का परि-
णाम अति अ्रनिष्टजनक होता है उस क्रिया को
हाथ में न लेना चाहिए '
इतने सामान्य विचार यदि स्थिर बद्धि से किए.
जायं, तो बहुत-सी अ्रनर्थकारिणी क्रियाओं को करने से
User Reviews
No Reviews | Add Yours...