आचारांग | Acharang

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रामलाल जैन - Ramlal jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचाराग न (१) जिस क्रिया को में करता हैँ वह मभसे बन सकेगी या नहीं ? या फिर मेरी शक्ति के बाहर को तो नहीं है ? क्योंकि यदि शक्ति बिना क्रिया करने चलें तो कई बार श्रधबोच में रह जाना पडता ই | इसलिए क्रिया चाहे कितनी ही सुन्दर हो तो भी अपनी शक्ति विचार कर करना चाहिए । (२) में जिस क्रिया को करता हूँ, वह इच्छा- नुसार ध्येय युक्त फल देगी या नहीं ? क्योंकि ध्येय शून्य क्रिया में उत्साह, शक्ति, या साहस साँगोपांग , टिकते नही, श्रौर इसीसे वह्‌ क्रिया सफल सिद्ध नही होती । সাহা यहु है क्रि प्रव्येक कामके पीले कू स्पष्ट ध्येय होना ही चाहिए | (३) जो क्रिया में करता हूँ वह मेरा या किसी: और का अनिष्ट तो नहीं करती ? बहुत-सी क्रियाएं - देखने में सुन्दर, अपनी शक्ति से साध्य तथा थोड़ा-सा इष्ट देने वाली होती है, तो भी जिस क्रिया का परि- णाम अति अ्रनिष्टजनक होता है उस क्रिया को हाथ में न लेना चाहिए ' इतने सामान्य विचार यदि स्थिर बद्धि से किए. जायं, तो बहुत-सी अ्रनर्थकारिणी क्रियाओं को करने से




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