नवतत्व | Navtatv
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
( १६) प्रथम संहनन-'वजक्रपमनाराच- जिस, कर्मे
मिले, उसे वज्ऋषभनाराचः नामकमे करते हैं|
हड़्ियाकी स्वनाको ,संहनन कहते है।. ,, )
दो हाईका ` मकंट बन्ध होने पर एक पद्य (बेठन) दोनों
पर रुपेट दिया जाय फिर तीनो पर खीरा टोका जाय इस
तरहकी मजबूत 'हडयोकीः रच्नाको वजक्रपभनाराचः
कहते हें ।
( १७ ) प्रथम संखान-समचतुरस' जिस कमंसे भिरे
उसे समचतुरस संसथान नासकमे कहते द । वि
पलथी मारकर बेठनेसे दोनों जाडु ओर दोनों ऋन्धोंका
५ इसीतरह बायें जानु ओर दहिने कन्धेका तथा दक्षिण जानु
ओर बामस्कन्धका अन्तर समान हो, तो उस संखानको
समचतुरस् संखान कते रै । जिनेश्वर भगवान् तथा देव-
ताओंका यही संखान हे । ~
वण्ण चउका5गुरुलहु,
परघा ऊसास आयवुनों ।
सुभं खगडइ निमिण तस दंस
सुर नर तिरि आड तित्थयरं ॥.११ ॥
वरणंचतुष्क, (वणे, गन्ध; रस ओर स्पशे ) अगुरुलघु
पुराघात, .धासोच्छास, आतप, उद्योते, शुभविहायोगति;
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