श्री सज्झाय संग्रह | Shree Sajhay Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जम्बू स्वामी की सज्ञाय | (९) च 1-11-11 1 1 1 11 11 11 1.11 1101-1 1 + 1 दाद 5७5 2৬১ न वाल जा० | पणि दिवस अटारो आवियो, तु ले छे सुयम- भार जा० तु० ॥१०॥ हरे माजी अुसाफिर आव्यो कोई पर्ण लो, फरी भेगो थाय न थाय मा० । एम मानव-भव पामबो दारि लो, धमं विना दुर्मति जाय मा० हवे° ॥११॥ हवे पोचसां नारियों इम षिनवे, तमो वडेरी करे रे जवावं वलम मोरा रे | स्वामी तुमे सयम तेवा संचयां, बालम अमने कोण आधार वःलम मोरा र| बालम विना किम रही सदं ॥१२॥ दारे माजी मात-पित्‌ ने भाई वेनडी, नारी कुटुम्ब परिवार मा० | अन्त समय अलगा रहे; एक जेन-धर्म तरणतार मा० हवे० ॥१५॥ हवे धारणी गता इम बिनवे, यह पृत्र न रहे संसार भविक जन रे | एक दिवस चु राज भोगणवी, संयम लीधा पदागैर स्वामी पास भविक्र जन रे । सोभागी कुबरे सजम आदर्यो ॥?४॥ तप जप संयम आर्यो, आराधी गया देवला भाक जन रे। पन्नरे भव पूरा किया, महाविदेह क्षेत्रमाँ जासे मोक्ष भविक जन रे। सोभागी कुंबरे संनम आदर्यों ॥१४॥ इति । # (1 হয বর (४) श्री जम्व॒ुस्वामों को सब्काय । रानग्रही न्गरी का वासी, घर में लीलबिलासी । ऋषभदत्त तो तात जम्बूजी का, धारिणी ज्यारी माता ॥ तुम पर वारी, वारी हो जम्वूजी वरागी।॥ तुम० ए ऑकणी




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