भारतीय वांग्मय के अमर रत्न | Bharteey Vangmaya Ke Amar Ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्तर वैदिक वाडमय--वैदांग ९
व्व-शाख्र--अर्थात् भाषा-विपयक विज्ञान--के अंग हैं। इनके
साथ दो और वेदांगों के गिनने से छः पेदांगों और उत्तर वैदिक
चादःभय की गिनती परी होती है। उन दो में से एक था ज्येत्तिष,
ओर दूसरा करष। ज्योतिष प्राचीन यौ का एकमात्र भतिकं
विज्ञान था। वैदिक ज्योतिष का कोई ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है।
তত में आयी के व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक अनुष्ठान
का समुच्चय था, जो क्रमशः भरत, गृह भौर धम कहलाता | इस
प्रकार, त्राह्मए-अन्धों के कर्मकांड का सार कल्पत्मम्थों में आा
गया।
वेदांग-मन्धों से हमारे देश में एक अनुपम शैली शुरू हुईं।
थोड़े से थोड़े शब्दों में अधिक से अधिक विचार भर देना उस
शैज्ो का सार है। वह सृत्र-रैली कहलाती है। बह शली ही सथं
चड़ मनोरञ्ञक है। उपस्थित वेदांग-प्रत्थ व्यक्तियों की रचनाएँ
नहीं हैं। उनके कर्ताओं के नाम हम नहीं जानते। यही हाल
सारे उत्तर वैदिक वाङ्मय का दै । वह शालक्न श्रथवा चरणो--
अर्थात् सम्प्रदायों--की उपज है । एक-एक शासा की शुरूशिष्य-
परम्परा मे बह उत्तरोत्तर जता ओर सम्पादित होता रहा है।
इसी कारण, उपस्थित धर्मसून्न यद्यपि पाँचवीं से तीसरी शताब्दी
३० पू० तक के है, तथापि उनमें कई शताब्दी पहले की सामप्री
तथा जीवन का चित्र है।
हिन्दी अनुवाद द्वारा वेदांगन्वाइसय का दिग्द्शंन करना हो
तो शिक्षा, निरुक्त और प्रातिशास्य के लिए एक जिल्द और शत
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