जगतत्रेता के प्रायश्चित वाले दुःख और मरण की कथा | Jagattreta Ke Prayschit Wale Dukh aur Maran Ki Katha

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Jagattreta Ke Prayschit Wale Dukh aur Maran Ki Katha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) শত ঘন शिष्यं के लिये भेज तैयार करने के लिये तरसता था | हां वह उनके अशान्त और व्याकुल मनें का शान्त ओर स्थिर करने का अभिलापी था । वह परमेश्वर की व्यचस्था के अधीन होते हुए बड़ी दीनताई दिखाके इस्राएली गरहस्थ के समान अपने शिष्यों के संग निस्तारपब्य का मेम्ना खाने के लिये अपने का तेयार करता था। उस ने बड़ी दीनताई की दशा में दवाके अपनी महिमा की कुछ किरणों को शिष्यों पर चमकने दिया । जिस झाज्षा के उस ने उन्हें दिया कि जाके निस्तार पव्व का भोजन तैयार करे उस से शिष्यां का मालूम हुआ कि हमारा शुरू सर्वज्षानी है क्योंकि जेसा उस ने बताया था वैसा उन्हें ने पाया। शिष्य लोग उस गुप्त चेले के जिस की चचा प्रभु ने किई थी पाके उस के घर मं निस्तार्पव्यै का भोजन तेयार करने लगे । जव वे तैयारी कर चुके थे तब प्रभु यीश अपने दूसरे शिष्यो के संग श्राके मेज पर वेडा । किसने इस भोजन पर श्रत्तिथिसेचक दाना न चाहा होगा । जकई पर यह अप्र हुआ कि बदद अपने घर में प्रभु को अच्ण करने और उस की श्रतिथिसेवा करने पाया । गायस के विपय लिखा है कि वह सारी मण्डली का श्रतिप्यङासी था । जव षह मरडली की सेवा करता तव प्रभु की सेवा करता था | आज कल भी देसे ज्ञोग पाये जाते है जो प्रश्न योश के अतिथ्यकारी है। अवश्य है कि जब कि प्रभु योश्‌ अपने प्रेमरूपी दाथ से हमारे हदयरूपी धर फे ढार पर खरसखरावे तथ द्वार खोलके उसे अहण करें । वद्‌ हमारा धन से| नहीं घढिक मन पाने के शाता है ॥ ऐसा जान पहता है कि घर का स्वामी हाजिर नहीं था और कोई सेचक भी नदी था | यदि उन में से काई हाजिर हाता ते उस पर फर्ज हेता कि चद प्रेम दिखाके प्रभु फे ओर इस के शिष्ये| के पांव धोवे। जब कि द्वाल यह था ते आवश्यक हुआ कि शिष्यों में से कोई यदद काम करे | इस के बारे में बात करते करते उन में यद्द विबाद हुआ कि हम में बड़ा कौन है। सेचा करने में काई बड़ा होना नहीं चाइता था परन्तु सव समस्ते थे छि रेखा नीच काम करना हम बड़े लोगों के योग्य नही है। तीन बरस से वे मसीह की संगति कर रहे थे तौमी वे घमणएडी थे। प्रभु জল হ্যা और नमूने से उन्हें दीनताई सिखत्ताता रद्दा पर अब लें वे समझते थे कि हम कुछ हैं. । श्राज कक्ष मसरीही लोगों में बहुत जन हैं जे अपने फो बड़े समभंके दीन होना -और सेवा करनी नहीं 'चआाएते हैं. । बहुत से काम जे उचित हैं ओर जिन के करने से कोई




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