मुक्तिबोध रचनावली | Muktibodh Rachnawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.22 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य के दृष्टिकोण
साहित्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए ? इसके उत्तर के लिए हम उन सभी
दृष्टियों पर विचीर कर लें जिनसे अब तक लोग साहित्य को देखते आये हैं । हम
उन दृष्टियों की साधारण गणना न कर उन दुष्टियों के सुल पर भी सोचते चलें,
और इसी तरह उनके सापेक्ष महत्त्व को भी निश्चित करते चलें ।
साधारणतया, साहित्य के दो पहलू रहे हैं । एक तो वह जिससे मनोरंजन हो, _
और दूसरा वह जिससे हम श्रधिक मानवीथ होते चलें । पहुला केवल मनोरंजन ही
मनोरंजन है, उसके आगे कुछ नहीं । और दूसरा किसी आदंशं को लेकर चलता है ।
पुराने समय में भी एक साहित्य केवल मनोरंजन के लिए लिखा जाता था,
जिसमें चर्ण-चमत्कार और वर्णन-चमत्कार का वाहुव्य था । और दूसरा वह था,
जिसमें रसोद्रेक का उद्देश्य वह था, जिसमें रसोद्रेक का उद्देश्य मनुष्य को अधिका-
घिक मानवीय करते चलना था । चूँकि मनोर॑ंजक साहित्य का उद्देश्य अत्यन्त
सामयिक है, इसलिए हम दूसरे प्रकार के साहित्य पर, जिसमें किसी आदर्श को
लेकर चलना होता है, विचार करते चलें । भर इन्हीं आदर्शों पर विचार करते
हुए हमें उन सभी दुष्टियों का पता चल जायेगा जिनसे साहित्य देखा जाता है ।
यूरोप में उपस्यास-साहित्य ने साहित्य की विधिध कहपनाओं (कंस प्हान्स ) को
जन्म दिया । खासकर फ्रांस साहित्यिक विचारधारा का सबसे अधिक जिम्मेवार
है। रोमांस, जिसमें सामयिक मतोरंजक साहित्य अधिकांश में था, फ्रांस के
उपस्यासों का मुख्य विषय रहा । रोमांस, जैसा कि वह शैले में या कालिदास में
पाया जाता है, अपनी सचाई के कारण, अपनी आत्तरिक भाव-प्रवणता के कारण,
आदर्श की ओर ही उत्मुख है । दूसरी तरह का रोमांस, जो अधिक बाहरी है
और केवल हमारी कल्पना को ही तृप्त करता है, साहित्यिक आदर्श के निकट
नहीं हैं। कुछ-कुछ इसी तरह का रोमांस फ्रांस में प्रचलित रहा । कथा-कहानियों
में स्त्री-पुरुप-प्रेम, जिसका असलियत से कोई सीधा वास्ता नहीं था, कल्पना को
तृप्त करने के लिए लिखा गया ।
मुक्तिबोध रचनावली : पाँच | 19
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