मुक्तिबोध रचनावली | Muktibodh Rachnawali

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Muktibodh Rachnawali by पं नेमिचंद्र जैन - Pt. Nemichandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य के दृष्टिकोण साहित्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए ? इसके उत्तर के लिए हम उन सभी दृष्टियों पर विचीर कर लें जिनसे अब तक लोग साहित्य को देखते आये हैं । हम उन दृष्टियों की साधारण गणना न कर उन दुष्टियों के सुल पर भी सोचते चलें, और इसी तरह उनके सापेक्ष महत्त्व को भी निश्चित करते चलें । साधारणतया, साहित्य के दो पहलू रहे हैं । एक तो वह जिससे मनोरंजन हो, _ और दूसरा वह जिससे हम श्रधिक मानवीथ होते चलें । पहुला केवल मनोरंजन ही मनोरंजन है, उसके आगे कुछ नहीं । और दूसरा किसी आदंशं को लेकर चलता है । पुराने समय में भी एक साहित्य केवल मनोरंजन के लिए लिखा जाता था, जिसमें चर्ण-चमत्कार और वर्णन-चमत्कार का वाहुव्य था । और दूसरा वह था, जिसमें रसोद्रेक का उद्देश्य वह था, जिसमें रसोद्रेक का उद्देश्य मनुष्य को अधिका- घिक मानवीय करते चलना था । चूँकि मनोर॑ंजक साहित्य का उद्देश्य अत्यन्त सामयिक है, इसलिए हम दूसरे प्रकार के साहित्य पर, जिसमें किसी आदर्श को लेकर चलना होता है, विचार करते चलें । भर इन्हीं आदर्शों पर विचार करते हुए हमें उन सभी दुष्टियों का पता चल जायेगा जिनसे साहित्य देखा जाता है । यूरोप में उपस्यास-साहित्य ने साहित्य की विधिध कहपनाओं (कंस प्हान्स ) को जन्म दिया । खासकर फ्रांस साहित्यिक विचारधारा का सबसे अधिक जिम्मेवार है। रोमांस, जिसमें सामयिक मतोरंजक साहित्य अधिकांश में था, फ्रांस के उपस्यासों का मुख्य विषय रहा । रोमांस, जैसा कि वह शैले में या कालिदास में पाया जाता है, अपनी सचाई के कारण, अपनी आत्तरिक भाव-प्रवणता के कारण, आदर्श की ओर ही उत्मुख है । दूसरी तरह का रोमांस, जो अधिक बाहरी है और केवल हमारी कल्पना को ही तृप्त करता है, साहित्यिक आदर्श के निकट नहीं हैं। कुछ-कुछ इसी तरह का रोमांस फ्रांस में प्रचलित रहा । कथा-कहानियों में स्त्री-पुरुप-प्रेम, जिसका असलियत से कोई सीधा वास्ता नहीं था, कल्पना को तृप्त करने के लिए लिखा गया । मुक्तिबोध रचनावली : पाँच | 19




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