सर्वोदय | Sarvodaya

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Sarvodaya by हरनामदास गुप्त - Harnamdas Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सचाई की नह ११ एफ 1 होना द; परन्तु इम विपयमं वट फलु समिग्ल । सचना यष्ट हैं कि एक-दूसर का सांसारिक स्वार्थ एक ने होन पर भी एक-दूसरेका विरोधी दानाया विराधी चन रना जरूरी न्दी ह ष्फ घर में रोटी के लाल पड़े ४ै। घर सें माता और उसके चर ४ | दोनो को भव लगी है शान में दोनो क--माता अर बच्चे फे--स्वार्थ परस्पर विरोधी ৩। মালা লানী दे तो बच्चे भरी मरते श्रार चन्यं सान त्तोमों भुमी रह जानी 8 । फिर भी माता ओर बच्चो में कोड विशेध नहीं है। माता अधिक चलबती है तो হেল कारण वह रोटी के डुकड़े को खुद नहीं गपा डालनी । ठीफ यती वात मनुष्य कं परस्पर्‌ फे सम्पन्थ फे विषय से भी सममनी चाहिए। হাতে देर के लिए सान लीजिए दि सनुप्य নাহ অত से कोट लन्‍्तर नहीं | হয पशुओं की नर पपन- अपने সান के लिए लड़ना ही লাতিন, | লগ भी यड़ घात नियम रूप में नहीं




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