गुरु गोविन्द सिंह | Guru Govind Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ११ (০০০০০ नकन नवे क-म = ~~~ दक के साथ हम गुद्गोविन्द देव का परचित्र चरित्र आरम्भ करते है । शन्त में इतना कहना हमारा धर्म्म है कि हमने अपनी प्रस्तावना में अपने परम मित्र लाला भोकुलचन्द जी नारग एम० ९०, डांकुर आफ़ फ़िज्ञांसफ़ी, वार-एट-ल्रा, भूतपूर्व श्रध्यापक डी०ए०ची० कालेज के अंधसे जिसका नाम टांसफार्स - शन आफ सिक्खिजम दै वहत सहायता ली है । मेने लाला जी से थ्राज्ञा नहीं लो, क्योंकि मुझे आपकी मित्रता पर इतना अमिमान है कि श्ज्ञा लेता मैंने उस प्रभाह मित्रता का अप- मान करना समझा ! साथ ही यह भी कह देना उचित होगा मूल चरित्र में मेंने कई अंगरेज़ी व हिन्दी लेखकों से सहायता जी हैं किन्तु प्रधानता में सरदार लक्ष्मण सिह और पूर्व प्रकाशित लाला साहव का ही ऋणी हू । विद्वानों का पादानुरक्त राधामोहन भोकुल,जी (राधे)




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