अजित और दुर्गादास | Ajit Or Durgadas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ वारप्रभाकर्
कहा जा सकता | उपजाऊ खेत में जो काँटे के पेह उग
आते हैं, क्या उनमें वेधने की शक्ति नहीं रहती ।
७-पहान् के दुबंचन तो सह भी लिये जा सकते हैं
किन्तु पान् फ वर से ववान छोटे मनुष्य के दुवंचन नहीं
सहै जाते | छूर्य का प्रचंड ताप तो सह लिया जाता है,
परन्तु सूय की किरणें से तपी हुई षाट् की गरमी नहीं
सही जाती ।
८-उत्तम की प्रीति या उत्तम की शत्रुता पत्थर पर
की छकीर के परावर होती है। मध्यम कौ प्रीति वा शत्रुता
बालू की लकीर की भाँति होती है। अधम की प्रीति या
शत्रुता जल की रेखा के समान है ।
९-हास्य से भी बहुधा अनिष्ट होता है । विनी
देखने में तो चमकदार होती रै, परन्तु उससे भयानक षज-
पात भी रेता है ।
१० रातत दिन शास्त्र पढ़ने ही से ज्ञान नहीं प्राप्
होता | दवा का नाम मात्र लेने से रोग की निद्ृवत्ति नहीं
हेती ।
११-मू्ख को उपदेश देने से वह शांत होने के बदले
और भी अधिक कुपित होता है| सप॑ का विष उसे दूध
पिलाने से घटता नहीं, वरिक वदता है ।
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