अज्ञात | Unknown
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
608
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो वर्ष पहले जब नदी से भभी श्रमी वफं हट चुकौ थी-
श्रफनासी निकीतिन तीन नावें लेकर उत्तर की ओर गया था। त्वेर
का यह व्यापारी उस समय तैंतीसवें वर्ष में कदम रख चुका था।
उसे अपनी इस यात्रा से बडे बडे लाभ की आशाए थी। আমী নক
तो वह व्यापार के सिलसिले में श्रपने पिता के साथ ही झाता-जाता
रहा था। किन्तु स्वर्गीय प्योत्र निकीतिन समय के साथ बहुत कुछ
सतर्क हो गया था। लम्बी यात्राप्रो पर जाना उसने छोड दिया था।
भौर उसने अपने भ्रश्ान्त और नये नये धनुभवौ के लिए व्याकुल पुत्र को
उत्तराधिकार से वचित करने की धमकी देकर श्रौर भमत्संना का भय
दिखाकर रोके रखने की पूरी चेष्टा की थी।
“जव मर्गा तो सव तुम्हारे लिए छोड जाञ्गा, जैसा
चाहना करना, लेकिन इस समय मैं तुम्हे कही न जाने दूगा।
में बृढा हो चुका हु और अब कोई जोखिम नहीं उठाना
चाहता। /
वेटा चुप रहा। पिता का कहना सच था। बेटा जानता
था कि लम्बी यात्रामनो मेँ कितने कष्ट, कितनी मुसीबते उानी पडती
हैं। इसमे सन्देह नही किं एेसी याव्रामनो में वडे बढ़े लाभ होते
है, भ्रनेकानेक श्राइचर्यजनक चीज़ें, अ्रभूतपूर्व सौन्दर्य और चमत्कार
देखने में आते हैं। लेकिन यह भी तो है कि भ्रगर आदमी मौत से
व्च गया तो फिर विनाश के क्षण उसके लिए मुह वाये संडे रहते
हैं। स्वयं अ्रफनासी तीन वार अपने पिता के साथ ছিইহী में गया
था-एक वार जमन प्रदेशो मेँ, एक वार सराय मे श्रौर एक वार
प्रसिद्ध ज़ारग्राद में समुद्र के उस पार। और तीनो ही वार उसे
खतरो का सामना करना पडा था, दुष्टो से लडना पडा था -माल-
श्रसवाव श्रौर ज़िन्दगी के लिए।
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