महर्षि सुकरात | Mahrishi Sukraat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४)
राजसत्ता और राजनियम को सारे यूरोपवासी आदरश मानते
थे। राज्य के शासन का भार एक साधारण सभा के श्रधि-
कार में था। प्रत्येक चागरिक इस सभा का सभासद हो
सकता था, फेवल शत्त यही थो कि वह किसी कारण से
अयोग्य त ठहराया गया हे । हरएक्न सभासद को सभा में
हाजिर रहना सी कानून के अनुसार आवश्यक था। यहाँ
प्रतिनिधि चुनने की चाज्ञ न थी श्रौर किसी संत्रिमंडल का
संगठन न था। राजसभा के सारे सभासद राज्य का सब
प्रबंध आप ही करते थे। किसी खास मनुष्य पर कोई बड़ी
जवाबदेही नहीं रहती थो। इससे एक यह लाम बड़ा भारी
था कि प्रत्येक्ष नगरनिवासी को राज-काज से संबंध पड़ता
और यों सबका सहज ही में राजक्नाज की शिक्षा भी मिल
जाती तथा हर एक्न आदमी अपने की राज्य के भारी से भारी
मामले का प्रबंधकर्ता और उत्तदाता समझता था। सभा में.
बैठे हुए, पालामेट के सेबरों की तरह, उसे अपने राज्यप्रबंव,
नियम, कानून, विदेशी राज्य से संबंध, मैत्रो, शत्रुवा, साम,
दाम, दंढ-भेद आदि प्रश्नों पर विचार करना पड़ता, अपना
विचार प्रगट करना तथा दूसरों की दल्ोलों वथा तक्े-वितर्क
में स्वयं भाग लेना पढ़ता थधा। कप्ती एक तरफवाले कोई
डी शानदार वक्ठृता देते ते दूसरे पर्तवाले उक्छके बालन कौ
खाल उड़कर उसकी मीमांसा की जड उखाड् देते थे।
देने ओर से खूब सरगरसी से वहस चलती थों। सदस्यों
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