हिंदी काव्य की कलामयी तारिकाएं | Hindi Kavya Ki Kalamayi Tarikaye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भीरा [ १३
की सृष्टि की है। इसी लिये तो उनके गीतों में उनका हृदय
लोलता है, उनके प्राण मंकृत होते हैं, और इसी लिये मीरा
विश्व-साहित्य की अमूल्य निधि भी बन सकी हैं।
मीरा भक्त थीं । गिरिधर गोपाल उनके आराध्य देव थे ।
उन्होने अपना तन-मन धन सब कुछ उन्हीं के नाम पर
'निछावर कर दिया था। यह सच है, कि मीरा के गिरिषर
कभी ब्रज की गोपियों के साकार और मनुष्य रूप में नायक
थे, किन्तु मीरा का गिरिधर साकार होते हुये भी निराक्ार है,
'सीमित होते हुये भी असीम है | मीरा के अपने गिरिधर मे
एक ऐसी ज्योति और एक ऐसा भरखरड सौन्दयं दिखाई देता
है, जो इस संसार के बाहर एक किसी दूसरे संसार की वस्तु
है। मीरा इस नश्वर जगत में अपने प्रियतम के उस सौन्द्य
के स्थायिल को सममती हैं; और उस पर वे अपने को छुटा
देती हैं। पस सौन्दर्य के आगे मीरा को इस नश्वर जगत में
चुछ दिखाई ही नहीं देता । मीरा वियोगिनी हैं, विरहिशी हैं,
किन्तु फिर भी वे आनन्द में उन््मत्त बनकर गाती हैं। गाती
हैं, इस लिये, कि वे उस प्रियतम की विरदिणी हैं, जो असीम
है, अनन्त है, अ्रतक्ष्य है, और श्रप्राप्य है। मीरा को अपने
इस प्रियतम की पिरहिणी होने पर गये है। देखिये, वे किस
अकार आनन्द से पुल्नकित होकर कह रही हैं :--
पायो जी मैंने नाम रतन घन पायो।
यहाँ सीरा के विरह में ज्ञान है, एक गंभीर दाशनिकता
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