हिंदी रत्न निबंधमाला | Hindi Ratna Nibandhmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ज्ञ) लोग विचार को शेली के अन्तगैत ही मानते है । इसी से कहते है कि शेली से हम मनुष्य के स्वभाव का पता लगा सकते हैं। शैलियाँ कई प्रकार की होती हैं, किन्हीं में विचारों का प्राधान्य रहता है, किन्दीं मे भावों चोर मनोवेगो का अर न्दी मे शब्दों का अथवा अलंकारो का! आजकल शब्दों बा अलंकारो को प्राधान्य देने में अधिक मान नहीं है ओर न॒ बड़े-बड़े समास रखना अच्छा समा जाता है । शेली चाहे जिस प्रकार की हो । राष्दौ की उपयुक्तता- यद्यपि एक अथे के घोधक बहुत शब्द्‌ होते है. तथापि उनमें थोडा बहुत अन्तर होता है अर उनकी व्यंजना अलग-अलग होती है । अतः स्थान और भाव के अनुसार शब्दों का चुनाव करना चाहिए। जो भाव गृहिणी कहने से प्रकट होता है वह ललना कहने से नहीं । 'गृहिणी' से गृह-प्रबन्ध व्यंजित होता है ओर (ललना, से प्रेम । जहाँ भोजनादि गृह-प्रबन्ध तथा वचँ के पालन-पोषण का वणन करना हो वह्यं गृहिणी शब्द का प्रयोग करना उचित है ओर जहाँ प्रेम का वर्णन करना हो वहाँ ललना. रमणी आदि शब्दों का व्यवहार करना चाहिए | इसी प्रकार लल्ना और ग्लानि का प्रायः एक सा अथे है; किन्तु लज्जा दूसरों के संबंध में होती है ओर ग्लानि अपने सम्बन्ध में | जेसे-- हमको यह बात कहने में लज्जा आती है। किन्तु जब “कनेः के स्थान में 'सोचनां' लिखा जाय ( कहना दूसरों से होता है और सोचना अपने मन में होता है) तब ग्लानि शब्द का प्रयोग आवश्यक हो जाता है । शब्दों को स्पष्टता--जहाँ तक हो हमको दो अथै बाले शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए | जहाँ हम सूर्य कह सकते हैं वहाँ . अकं नही. कहना चाहिए, क्योकि अकं सूय के अतिरिक्त आक कै




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