अथ अथर्ववेदीय प्रश्नोपनिषद् | Atha Atharvavediya Prashnopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ममः अन्नः १ ९५
सवानि जारुरदितते जेष्य सक्त शादि -
लेया 1 सूयं श्च खलैत्तेजखवस्त् नां कारुखं লতা
सीव खन ५1 कचृश्दितः अ्वद्धंते स्वस्वक्छ्मेशि य
वत्त ते च । तएव जारखशाग्निरूपा सावत् छक्ति
स्तमिखायां मन्दुत्वसापद्यते स् चदृसारसजाती-
यतद्गश्मिसाहार्यमुपलस्भेदह्ी पिला जायते + यन्न
यन्न जडेन सर्यरप्मयः पसरल्ति तन्रतच्रस्यः भा-
कत्त श्दतयरतन्मखा भव्ति खथयोषष्यादिष् म
तिष्ट रध्मयः षसान्पेदुक्छापश्ला जनयन्त ।
पञ्चममन्त्रे सखोस्य भो्रूपापन्यसच्चसनेन च
भोक्त ्दाक्तिः सय नोज्यरूफापन्नाप्रदश्खे ते १६४
আয আি-সসল ফ্লাস व्यष्ख्यष्न रूरतेदहं--(खथ) सात्र
ष्ठी समासि होते समय (मग्ददित्यः) सये (उदयन्) उदित स्रेतपए
छुआ (यत) जिस कारण (प्रप्चौ्) सूदे (द्ष्एम्) दिथण्मे (रचि
श्वयति) प्रवेश्य करत अयत् अपने तेजसि व्यग्र होता ই (त्तेन)
छसीकोरण (माच्यान) হুল হত্যা च्यत ( भ्रणार् ) मोच्छूष्पत्ति-
यष्ट (रण्सियु) अपने म्काशसय किरणों में (सक्तियत्त) संयुक्त
करता (यत, दुक्तिअण्म) जिससे दुक्तिण दिशा (লা, অলী)
जिससे पंश्चिस (यत्,उद्ीचरेस) जिससे उत्तर (यत्.ज्जधः) जिस से
नीचे (यत् , ऊध्वेम् ) जिख चे ऊपर शौर (यत््.अन्लराः, दिशः)
जबीचकी फोणश ददिश्व दैश्यण्न परादि पवेश च्छरतए अथोत् अपने
क्किर्णरूप भ्रश्य क्तो सैन्लए्वष ड (यत्) शरीर जिस कारण अन्य
(सवैम्) सख लस्तुलश्त्नव्ते (आकाशयति) भरकाश्िित करताहे (सेन)
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