अथ अथर्ववेदीय प्रश्नोपनिषद् | Atha Atharvavediya Prashnopanishad

Atha Atharvavediya Prashnopanishad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ममः अन्नः १ ९५ सवानि जारुरदितते जेष्य सक्त शादि - लेया 1 सूयं श्च खलैत्तेजखवस्त्‌ नां कारुखं লতা सीव खन ५1 कचृश्दितः अ्वद्धंते स्वस्वक्छ्मेशि य वत्त ते च । तएव जारखशाग्निरूपा सावत्‌ छक्ति स्तमिखायां मन्दुत्वसापद्यते स्‌ चदृसारसजाती- यतद्गश्मिसाहार्यमुपलस्भेदह्ी पिला जायते + यन्न यन्न जडेन सर्यरप्मयः पसरल्ति तन्रतच्रस्यः भा- कत्त श्दतयरतन्मखा भव्ति खथयोषष्यादिष्‌ म तिष्ट रध्मयः षसान्पेदुक्छापश्ला जनयन्त । पञ्चममन्त्रे सखोस्य भो्रूपापन्यसच्चसनेन च भोक्त ्दाक्तिः सय नोज्यरूफापन्नाप्रदश्खे ते १६४ আয আি-সসল ফ্লাস व्यष्ख्यष्न रूरतेदहं--(खथ) सात्र ष्ठी समासि होते समय (मग्ददित्यः) सये (उदयन्‌) उदित स्रेतपए छुआ (यत) जिस कारण (प्रप्चौ्‌) सूदे (द्ष्एम्‌) दिथण्मे (रचि श्वयति) प्रवेश्य करत अयत्‌ अपने तेजसि व्यग्र होता ই (त्तेन) छसीकोरण (माच्यान) হুল হত্যা च्यत ( भ्रणार्‌ ) मोच्छूष्पत्ति- यष्ट (रण्सियु) अपने म्काशसय किरणों में (सक्तियत्त) संयुक्त करता (यत, दुक्तिअण्म) जिससे दुक्तिण दिशा (লা, অলী) जिससे पंश्चिस (यत्‌,उद्ीचरेस) जिससे उत्तर (यत्‌.ज्जधः) जिस से नीचे (यत्‌ , ऊध्वेम्‌ ) जिख चे ऊपर शौर (यत््‌.अन्लराः, दिशः) जबीचकी फोणश ददिश्व दैश्यण्न परादि पवेश च्छरतए अथोत्‌ अपने क्किर्णरूप भ्रश्य क्तो सैन्लए्वष ड (यत्‌) शरीर जिस कारण अन्य (सवैम्‌) सख लस्तुलश्त्नव्ते (आकाशयति) भरकाश्िित करताहे (सेन)




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