आनन्दामृतवर्षिणी | Anandamrita Varshini

Book Image : आनन्दामृतवर्षिणी  - Anandamrita Varshini

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आनन्दामृत्वर्षिणी । ९ क्था चवण करना सन्तेक्ना सेम केना ती्थौका सेषन्‌ करना सस्यफल उन्दका थी परम्परा करे पेक्ष २ ऐसेद्दी काम अपने सुखके लिये खाना पीना और आनन्द ये घ्ीका सग ओर स्थान वलादि जो चख वद्धि सो गोग अर्‌ भोजनादि वास्त धके और श्रवणादि के लिये शरीरक्ी रक्षाकरनी ओर दीक्षा संय वस्ते पुरकी.र त्पत्तिके वोभी किसी अंशर्मं सुक्तिका देहुह इसका भी परम्परा करके मुख्यफूल मोक्ष है ३ तात्पय्य संसार पुरुषाथ मुख्य मोक्षे वे जो अविश्योप॑हित जीव उन्होंमें पे श्रुति स्वृति जो परमेश्वरकी आज्ञा हैं उन्होंदूं जो क्ष रते भवे उन्होंकी उपासनाके लिये जैसी उन्होंक यूति परमेश्वरकी वांछित हुई बेदी मायोपाहित इंश्वर, बल्ला, वि प्णु, महेश, सय्बे, शक्ति गणेशादि मूत्तिक धारण करते भये सो यूर्ति केलास वेकृण्ठादिमं ओर भक्तो उदयप स॒दा वास करती रहती है वे जो विष्णु भगवान हें सो भक्तों के उद्धारके'लिये जो ऐसे भक्त कि सक्ष जो प्रे श्रकी आज्ञा उसकूं करके शुद्ध किया है अन्तःकरण जन्होंने ओर शप्र द्मादि साधनों करके युक्त मोक्षकी इच्छावाले परन्तु बहुत गंभीर जो ऋग। यजु, साम, अथ- वर्ण वेद उनके विचारनेमें अप्तमर्थ ओर विना विचार- के ज्ञान नहीं होता हे जैसे पदार्थका भानु विना प्रकाशके इसलिये उन ब्रह्मतत्व विचारनेके लिये श्रीकृषष्णचन्द्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now