भारतीय साधक | Bhartiya Sadhak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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তু । दे भय कर रक्खा है । किस उपाय से जीवों का इन दुःखों से छुटकारा मिल सकता हैं, यद् चिन्ता विजली की चमक की सरहद कभी कभी उनके चित्त में चमक उठती थीं। सिद्धार्थ के हृद्यपट पर यद्यपि बाल्य आर किशोर श्रवस्था में अपने भावी जीवन का अत्यन्त गैारवान्वित आदश चित्र प्रतिविम्बित नदीं हुआ घा फिर भी इस ऊँचे आदशे की घुँधली छाया ज़रूर पड़ी थी । उन्होंने समझ लिया कि सब प्राणियों की भलाई के लिए मुझे कठिन साधना करना पड़ेगी । मन में इस प्रकार का विचार जाम्रत होने से किसी भी काम मे उनका जी नहीं लगता था। उनके विचार-गाम्भीये और चैराग्य ने सेसारी उल्लभनों में फेंसे हुए पिता शुद्धोदन के चित्त का चिन्तित कर दिया । राजा ने पुत्र को सांसारिक सुख-सेय की ओर कऋुकाने की इच्छा से उत्तका विवाह शाक्य- चंशीय, एक रूप-गुण-सस्पन्न कुमारी गोपा के साथ कर दिया । अपने जीवन के सुख दुःख की संगिनी, सुशीला गोपा को पाकर सिद्धाथे ने कुछ काल तक सुख से समय वित्ताया । सांसारिक सुख की ओर सिद्धाथे के चित्त की बृत्ति जब कदं सुक गर तव वसन्तकाल में उन्होंने शहर में घूमते समय पहले दिन एक पलिंत केश, शिथिल्लन चमें, कम्पित पद और जरा-जीणे धर को देखा और दूसरे दिन अस्थिचमोवशेष, गति-लक्ति-विदीन शस्यागत रोगी को तथा तीसर दिन एक सूदे का देखा । जरा, व्याधि श्रीर्‌ म्रत्यु का यद्ठ शोकदायक




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