दयानंद के यजुर्वेद भाष्य की समीक्षा | Dayanand Ke Yajurved Bhashya Ki Samiksha

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Book Image : दयानंद के यजुर्वेद भाष्य की समीक्षा  - Dayanand Ke Yajurved Bhashya Ki Samiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९३) जोकि सर्वयाअपक्त है। ईैखरका धन्यवाद है कि यजु- ' तंदके भाष्यमें उनसे बह सत्यवात लिखी गई परन्तु सना जीलोग अबभी यवादि अन्रोंसे हीम नहीं करते यह पक्ष पात नही तो भौर क्या है?॥ पृ २८० है जगदी श्वर | में और रापपटृने पदा नेहारे दोनों मीति साथ ठतकर विदान्‌ घामिकष हों कि जि समे दौनोरौ बिद्या दद्टिसदा होवे इति-खामीजोके विचारमं दश्ठर पुरो विन्‌ शौर 'धाभिंक्‌ लहीं है धन्य १८३ विकित्साशास्रके अनुसार सव भ्रानन्दोको भोगे ॥ एप्ठ १०९ प्रष्ठ विद्वान्‌ वैद हकर निदान आदि. के हारा सब प्राणियोंकी रोग रहित रखें इति ॥ खानी दूसरी बारके छपे सत्याप्रेप्रकाश के पृष्ठ ५८७ में त्रह्मादि भहषि योंके बनाये ,्रंधोर्मे बेद विरुद्ध बचन बताते हैं और पष्ट 3२ में कहते है कि (्रसत्व- मिश्रं सत्य॑ दृश्तस्त्याज्यभिति ) असत्यसे युक्त ग्रथस्य सत्यकी भी बेसे ही दोह देवा चाहिये जैसे विंषयुक्त अन को फिए' किस विकित्सा शाज के अनुवार सब आन न्दोंको भोग श्र किन प्रन्‍्धोंकों पढ़कर वेद्य होवे तथा किन निदान अन्यो के द्वारा सब प्राणियों को रोग शहित रखखें 7 ॥ ` ४




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