सनातनहिंदुधर्मव्याख्यानदर्पण | Sanatan Hindu Dharm Vyakhyan Darpan

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Sanatan Hindu Dharm Vyakhyan Darpan by आलाराम सागर सन्यासी - Aalaram Sagar Sanyasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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রে व्याख्यान ! 3 मंथ नसे रकवीस्पेके संयोगका होना कहो तो आदि शृष्ठिके शरीरोंका कारण दूसरे स्त्री पुरुषोंके रश वीय म!नने पड़ेंगे । यदि आप इसी सिद्धान्त को सानेंगे तो दयानन्द मत वब'ली आदि नृष्टिका लेख कुत्तेके सींगके स* मानमिभ्या सिद्दठ हो जायगा। और ' आदि सृष्टि सेथुनी नहीं थी ? दूया- नन्‍्दका यह लेख भी वन्ध्या स्ली के समान सिथ्या सिट्दु हो जायगा। স- करण यह कि ' निराकार ईश्वर में ही रज वीय उउजे थे! दयानन्द के भक्तों को यह पक्ष तो सर्वधा पदार्थ विद्या के विरुड् है । क्योकि साकार शरीरतो ही 1 में रंशवोयंकी उत्पंत्ति जनुभव सिद्द है यदि ईश्वर सें दीयेकी और रजकों 'अक्लेतिमें उत्पत्ति भानें तो देश्वर साकार सजुष्प और कृति सकार खी सानने 'पह़ेंगी ॥ कप - अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिमांतोसपितासपुत्रः इस यजवंद भल्‍्वके भाष्यसें दयाननदने जगदुत्पत्तिनें निराकार জব को पिता और प्रकृतिको माता कंरके बर्णेन किया है। यदि द्याननदके भक्त इस लेखको सत्य माने तो आंदि सृष्टिके खी पुरुष सबके सब भगिनी षद होगे क्योकि उनके मासा पिता इश्वर श्रीर प्रकृति एक हैं । यदि इसी सिदुन्तक्षो ठीक सानें तो दुयानन्दोक्त जादि सृष्टम भगिनी श्राताशञ्नों क्त विग्राह ्रथवा नियोग चिदु होगे । यदि ऐसे न भानें तो 'आदि,सृष्टिके पिता देश्यर और भाता प्रकृति है? यह लेख वन्ध्या सके पुज्के समान निथ्या होगा । यदि इस लेखको सत्य कहें तो दुयानन्दोक्त झादि सृष्टि के माता पिता হইল और प्रकृति भी साकार सावयव सिह्ठु होंगे। जैसे कि प्रत्यक्ष सृष्टिके साता ही भानें तो दयप्नन्दोक्त आदि ৮ माता पिंता इंश्वर मकृतिके दूसरे | भाता पिता सानने पड़ेंगे ।.न भाने सो मसाणोंसे विरोध होगा। यदि इेश्वर और मकृतिके साता पिताओं्शों भान भी लेबें तो दयानन्दी भस्तमें ईश्वर प्रकृंति साता पिताश्रोंमें झंनवरुण दोष झाजेगा। प्रायली प ,विनि भने জিতে घक्रका आर्साक्षप प्न्‍्यरेलयाश्रय इत्यादि दोंषोंका ,भी. म्संग होगा । द्याचन्दोक्त आदि सृष्टिकर अत्यन्ताभाव सिंहो! क्ष (कच्च) दयानन्द्‌ ने जो कडा कि “ दि शुष्मे ननुष्यादि शरीरोंको दीयते जय इश्वर अना लेत शै तो पञ्चत्‌ उरुके वद इेश्वर उन शरोरों में | আবী দা সন कप्त ह, | १ दानक भक দু ছিব पिता साश्नार सावयव देखे और छने जगते है ! यदि. द्यानन्द्‌के भक्त- एेखा आ




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