संस्कृत नाटकों में समाज - चित्रण | Sanskrit Natako Me Samaj Chitran
श्रेणी : धार्मिक / Religious, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.88 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य श्रौर समाज ७
यह्द झावय्यक नही हैं कि कल्पना मे हमारे वोको का उद्गम हमारे
अपने व्यक्तिगत जीवन की ही कोई प्रत्यक्ष अनुभूति हो । पारस्परिक
सामाजिक जीवन के ससर्ग श्रौर सादचयं से समवेदना द्वारा वह दूसरों
की अनुभूति मे भी हो सकता है । ससर्ग को निवेलता अथवा प्रवलता
के हेतु से समवेदना की जो निवंलता या प्रपलना बनेगी उसके कारण
हुसरो की अनुभूति से मिलने वाला बोक भी निवेल या प्रवल वनेगा 1
प्रयलता मे वह कभी फभी इतना वढ सकता है कि वह स्वकीय-जसा
ही प्रतीत होने लगे । अपने निकट प्रियजनों के सुख या कप्ट का भार,
ससर्ग श्रौर समवेदना की गटनता वे वारण, प्राय अपना-जेसा ही
प्रतीत होने लगता है । साथ ही यह भी झवधारणीय है कि उक्त भार
का सम्बन्ध निकटता श्रीर गहनता की अपेक्षा व्यक्ति को सवेदम-
वीलता के साथ श्रचिक है । देखने म आता है कि वहुत से लोग
अति निकट की अनुझूतियों को भी स्वीकार करने में शिथिल रहते हैं ।
इनके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते है जो कुछ अनिकटवतिनी
अमुभ्रूतिया को भी श्रपना लेते हैं । वाल्मोकि ऐसे ही लोगों मे थे
जिनके लिए एक सुरतरत नौंच का बाण विद्ध होना अपने बाणविद्ध
होने के समान ही था । श्रादि कवि के झतिसवेदी व्यक्तित्व ने उनके
जीवन के न जाने क्तिने दवे हुए वोभो के सचित श्रावेग को धारण
कर, कौच के साथ, उनका झ्रारोप कराते हुए, उनके मुख से अनेच्छिक
उदुगार करा डाला । निस्सन्देह इस उगादुर सम भारोप की कल्पना का
भाग था, परन्तु कवि के हृदयकोप से अझभिशुत होकर वह कल्पना
उसमे ऐसी मिल जुल गयी कि उसम श्रौर कवि के निजी वोभों म कोई
भेद न रह गया झ्ौर कवि का उद्गार प्रत्यक्ष आत्मानुभूति का सा
उदगार हो निकला 1
पोछे कहा जा झुका है कि 'माहित्य' उदुगार है झ्रौर उद्गार
का स्वरुप, हृदय को हलवा करने की दृष्टि से, आनन्द के है । फलत
साहित्य का स्वमाव भी आनन्द ही है, यह कहने में कोई बाघा अतीत
नद्दी होती । यह श्रानन्द जोवन की प्रतिकृति (नकल ) , प्रतिमा, प्रतिरूप,
पुनरायृत्ति, पुन सृजन द्वारा मिलता हैं । पुनरावृत्ति भी झानन्द ही हैं ।
पुनरावृत्तिमूलवा झानन्दोदुगार वी घेरणा का रुप ऐच्छिक श्र
अनेच्दिव' दोनो प्रकार का है । ऐच्छिकता में कल्पना का विलास
अधिक उत्मुक्त होता है, इपलिए वह सहज अनैच्छिक सदुगार की
तुलना म गोण पंदवी को ही अधिकारिणी हैं; परन्तु उदुगारी के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...