पशु वध | Pashu Vadh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pashu Vadh by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पएश-वध भर जी मत दुखा । इसका कहाँ तक अलनुकरण हुआ यह तो विश्व विदित है और वर्तमान समय स्वयम्‌ ग्रोतक है | ऐसे ही “वलिदान” प्रातः स्मणीय महाराणा प्रताप और शिवाजों आदि का है, जिनका यद्यपि पतश्च भांतिक शरीर नष्ट हो छुका परन्तु उनकी उज्ज्वलता कीति जीव मात्र के हृदय में हिलोरे पंदा करती हैं। “बलिदान” बतमान काल में महात्मा गांधी का भी कहा जायगा जो अहिंसा के सच्चे पुजारी हैं। यों और भो इस थम क्षेत्र भारत में बहुत लाल निपजे हैं, जिन्होंने छुछ्ठ न कुछ अपना लक्ष्य रख कर माता की ঘহী ঘং अपने बहुमृल्य प्राण न्यौछावर किये हैं । सन्‌ १८६३ में “वलिदान”” देशी राज्यों फ्रे अन्तर्गत अलवर में लेखक के पृज्य आता मेजर दीवान रामचन्द्र का हुआ जिन्होंने स्व. सर सबाई भद्षलसिंह बहादुर के वियोग में अलवर राज्य को किसों आपत्ति से बचाने के श्रमिप्राय से अपने प्राणों की परवाह न की और केलते-कूदते फॉँसी के तख्ते पर लटक गये । कथा लम्बो चोड़ी है अतः संकेश मात्र इतना ही इस स्थान पर कहनो पर्याप्त होगा | निकटभविष्य में प्रकाशित होने पाली लेखक की दूसरी पुस्तक “जीवन की भूल” में इस व्षिय *पर । पूकाश डाला गया है । “जयपुर” राज्य में उल्लेखनीय “बलिदान” तथा स्वार्थ त्याग दीवान अमरचन्द और छत्री केशवदास नामक सजनों के हुए हैं. जिनकी विश्यात कथाएं' जयपुर के सभी जन साधारण जानते हैं. कि दीवान अमरचंन्द-को 'फाँसी हुई और हरगोबिन्द नाअनी नामक मंत्री के धोखा . बेने के कारण फेशवदास जैसे रुचे, हिंतेदी को . स्व. मद्गाराजा. ईैश्वरीतिंहज के आम्रह “पर विष्‌ का प्याला पी शाण त्योगने पई 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now