प्रथमवृत्ति की भूमिका | prathamvrat ki bhuika

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prathamvrat ki bhuika  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धुराण विप॑य 1 ५९५ (४९६) ब्रह्मा क्या अछुतें का नाश नहीं ऋर खक्ते थे! यदि नहीं कर सक्ते थे ते सष्टि उत्पत्ति कैसे फ्री और कर खतक्ते थे तो हैश्वर से स्व॒रक्षाथे प्राथना की জী জঙ্ছাঁ ? আত হা২০॥হছ॥ (४९७) बल्ला ने देचता होकर भमो स्वपुत्नी से हो विषय करने की इच्छा की सो क्‍यों ! चार्च दुहितर तम्य स्वयम्भूहेरतीमनः ॥ सकामां चकमे चत्त: सक्षाम इतिरः श्रुतम्‌ ॥ भात ३।१२॥२७॥ (४९८) ईश्वर की आशा से न्ह्याने स्वशगीर क्षा परित्याय क्षर दिया जिले भूल भे त श्रालस्यादि उत्पन्न एष छो कया सत्य ह १ भा० ३॥२०॥३९॥ (४९५) देवी को कृपा से ब्रह्मा पुरुष रूप से रक्ली दोगए, थे यदि खत्य है तो फ़िर ब्रह्मा खुष्टि कर्ता कैसे ! देदी भागवत ॥ (५३०) ईश्वर ने घह्म। का बर दिया था कि तुम कभी मोह के प्राप्त न हैगे, ते वह्मा ने मेह चल बत्ल हरण यासो व्यो! भवान कल्पविकल्पेणु न विभुह्यति <|हहिचिद्‌ ॥ भा० २०॥३६॥ (००१) देपनकू चरन्ती सुगन्धि से सिय जत क्षामचशदहो হা तवःव्रह्माने फोश्रसे वृत क्षो, शाप সী স্ব ই সাখীনা करेमे पर वर्‌ द्विया, कयः युक्त दै । भविष्य प° उ० १२१॥ ८५०२) चिप्ण्‌, भणवानने छन्दा फा पातिन्नत धर्म नष किया खा क्प? क्थाच पाप नहीं। यदि है तो विष्णु ने क्‍या अपने पाप का प्रायश्विस एक्षिया १। क्ा० म1० १६४७ ॥ (4০২) छुली कपदोी दा तुम{पापी मानते हिवषा लहीं। यदि भानते है। ते तुज्दारे ईश्वर (विष्णु सनवान ने दैत्यों फे साथ दुल किया सा क्‍यों ॥ भा० १०४०८८३५ 1 (५०४) तुल के पत्ति के हनन फरके क्या ज्ञाभ-डठाया सो घनाओ | छल्लेच घ॒म्म सभेन मंम्र स्वामी त्वयाहतः ॥ देवो भाः ९। ठर २४१ (5০৭) শর, पे कान से मधुकैटभ - अछुर उत्पन्न दुध्रा ओर उच्ली से विष्णु सगद्ान ले पांच दजार वर्ष तक युद्ध কিম্বা অঙ্গ অন नपुमए तब उसने अछुते स्तो चर मांगा लिख सो बह मरा कत्य हैं ते कथा इस सो विष्ण भगवान ही चिवेद्धता নিজ লহ होतो है আই बर मांगा ) दुर्गापाउइझण हुए.“




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