भक्त - सुमन | Bhakt Suman
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्त विसोचा सराफ़
भगवानकी ही भाँति भक्तोंका गुणचिन्तन भी जन्म-जन्मके कल्मषकोः
मिटाकर चिर्ञान्ति और शाख़्त आनन्दका दाता है | और इसी
अर्थमें श्रीआयशझूराचार्यने 'मोहमुद्रर'में कहा है कि सजनोंका
एक क्षणका भी सङ्ग संसार-सागरको पार केके लिये सुदृढ़
नौका है) संतोका सङ्ग दोनों दी प्रकारसे हता है-उनकी
सन्निधिम रहनेसे ओर उनके गुण-स्मरणसे भी |
भक्तिपुरी पण्डरपुर और प्रसं श्रीपण्डरीनायसे हेम समी
परिचित हैं | वहाँसे पचास कोसके अन्तरपर औंढ़िया नागनाथ एक.
अत्यन्त प्राचीन शिवक्षेत्र है| यह बहत ही जागता इभा स्थान
है ओर भगवान् शङ्करके द्वादश ज्योतिर्मे एक दै । विसोवा
यहाँके रहनेवाले थे | ये जातिके तो थे यजुबेंदी ब्राह्मण, परल्तु
काम करते थे सराफ़ीका | इसलिये ये बिसोवा सराफ़के ही नामसे
्रष्यात इए ! घरमें एक सती साध्वी धर्मप्नी और चार लड़के थे |
जीवन वडा ही सादा ओर सेवा-परायण धा तथा सब-के-सवः
साधुसेवी थे | व्यवसायमें रहते हुए भी विसोबाका चित्त निरन्तरं
भगवानमें ही बसता था। वे एक आदर्श गृहस्थ थे और गृहस्थ-
धर्मका मुख्य अत अतिथि-सेवा उन्हें प्राणोंसे भी प्यारा था। पत्नी
भी इतनी अठुकूछ और बचे इतने - आज्ञाकारी कि यदि भोजन
बन चुकनेपर कोई संत-महात्मा या अम्यागत आ जाता तो उनमें
होड़-सी छग जाती कि मैं भूखा रहूँगा-मेरा दी भोजन अभ्यागतको
' दिया जाय | इस दोडा-होडीम विसोबाको वडा घुख मिता था ।
और यह नहीं कि भोजन देकर ही विसोबाको सन्तोष हो जाय,
वे अम्यागतको साक्षात् नारायण समझकर उसकी सवर प्रकारसे
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